कविता बघेल (वार्ता | योगदान) |
दिनेश चन्द (वार्ता | योगदान) |
||
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
<div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: शान्ति पर्व: द्विपञ्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 16-29 का हिन्दी अनुवाद</div> | <div style="text-align:center; direction: ltr; margin-left: 1em;">महाभारत: शान्ति पर्व: द्विपञ्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 16-29 का हिन्दी अनुवाद</div> | ||
− | इस संसार के सम्पूर्ण प्राणियों में जब दु:ख ही नहीं है, तब सुख कहाँ से हो सकता है? यह सुख और दु:ख दोनों ही प्रकृतिस्थ प्राणियों के धर्म हैं, जो कि सब प्रकार के संसर्गदोष को स्वीकार करके उनके अनुसार चलते हैं। जिन्होंने ममता और अहंकार आदि के साथ सब कुछ त्याग दिया है, जिनके पुण्य और पाप सभी निवृत हो चुके हैं, ऐसे पुरुषों का जीवन ही कल्याणमय है। अब मैं राजा के कार्यों में जो सबसे श्रेष्ठ है, उसका वर्णन करता हूँ। | + | इस संसार के सम्पूर्ण प्राणियों में जब दु:ख ही नहीं है, तब सुख कहाँ से हो सकता है? यह सुख और दु:ख दोनों ही प्रकृतिस्थ प्राणियों के [[धर्म]] हैं, जो कि सब प्रकार के संसर्गदोष को स्वीकार करके उनके अनुसार चलते हैं। जिन्होंने ममता और अहंकार आदि के साथ सब कुछ त्याग दिया है, जिनके पुण्य और पाप सभी निवृत हो चुके हैं, ऐसे पुरुषों का जीवन ही कल्याणमय है। अब मैं राजा के कार्यों में जो सबसे श्रेष्ठ है, उसका वर्णन करता हूँ। |
जनेश्वर! तुम धैर्ययुक्त बल और दान के द्वारा [[स्वर्गलोक|स्वर्गलोक]] पर विजय प्राप्त करो। जिसके पास बल और ओज है, वहीं मनुष्य धर्माचरण में समर्थ होता है। नरेश्वर! तुम [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] को सुख पहुँचाने के लिये ही सारी [[पृथ्वी]] का पालन करो। जैसे पहले इन ब्राह्मणों पर आक्षेप किया था, वैसे इन सबको अपने सद बर्ताव से प्रसन्न करो। वे बार-बार तुम्हें धिक्कारें और फटकारकर दूर हटा दें तो भी उनमें आत्मदृष्टि रखकर तुम यही निश्चय करो कि अब मैं ब्राह्मणों को नहीं मारुँगा। अपने कर्तव्यपालन के लिये पूरी चेष्टा करते हुए परम कल्याण का साधन करो। परंतप! कोई राजा बर्फ के समान शीतल होता है, कोई अग्नि के समान ताप देने वाला होता है, कोई [[यमराज]] के समान भयानक जान पड़ता है, कोई घास-फूस का मूलोच्छेद करने वाले हल के समान दुष्टों का समूल उन्मूलन करने वाला होता है तथा कोई पापाचारियों पर अकस्मात वज्र के समान टूट पड़ता है। कभी मेरा अभाव नहीं हो जाय, ऐसा समझकर राजा को चाहिये कि दुष्ट पुरुषों का संग कभी न करे। न तो उनके किसी विशेष गुण पर आकृष्ट हो, न उनके साथ अविच्छिन्न संबंध स्थापित करे और न उनमें अत्यंत आसक्त ही हो। यदि कोई शास्त्रविरुद्ध कर्म बन जाय तो उसके लिये पश्चाताप करने वाला पुरुष पाप से मुक्त हो जाता है। | जनेश्वर! तुम धैर्ययुक्त बल और दान के द्वारा [[स्वर्गलोक|स्वर्गलोक]] पर विजय प्राप्त करो। जिसके पास बल और ओज है, वहीं मनुष्य धर्माचरण में समर्थ होता है। नरेश्वर! तुम [[ब्राह्मण|ब्राह्मणों]] को सुख पहुँचाने के लिये ही सारी [[पृथ्वी]] का पालन करो। जैसे पहले इन ब्राह्मणों पर आक्षेप किया था, वैसे इन सबको अपने सद बर्ताव से प्रसन्न करो। वे बार-बार तुम्हें धिक्कारें और फटकारकर दूर हटा दें तो भी उनमें आत्मदृष्टि रखकर तुम यही निश्चय करो कि अब मैं ब्राह्मणों को नहीं मारुँगा। अपने कर्तव्यपालन के लिये पूरी चेष्टा करते हुए परम कल्याण का साधन करो। परंतप! कोई राजा बर्फ के समान शीतल होता है, कोई अग्नि के समान ताप देने वाला होता है, कोई [[यमराज]] के समान भयानक जान पड़ता है, कोई घास-फूस का मूलोच्छेद करने वाले हल के समान दुष्टों का समूल उन्मूलन करने वाला होता है तथा कोई पापाचारियों पर अकस्मात वज्र के समान टूट पड़ता है। कभी मेरा अभाव नहीं हो जाय, ऐसा समझकर राजा को चाहिये कि दुष्ट पुरुषों का संग कभी न करे। न तो उनके किसी विशेष गुण पर आकृष्ट हो, न उनके साथ अविच्छिन्न संबंध स्थापित करे और न उनमें अत्यंत आसक्त ही हो। यदि कोई शास्त्रविरुद्ध कर्म बन जाय तो उसके लिये पश्चाताप करने वाला पुरुष पाप से मुक्त हो जाता है। |
15:59, 31 मार्च 2018 के समय का अवतरण
द्विपञ्चाशदधिकशततम (152) अध्याय: शान्ति पर्व (आपद्धर्म पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: द्विपञ्चाशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 16-29 का हिन्दी अनुवाद
इस संसार के सम्पूर्ण प्राणियों में जब दु:ख ही नहीं है, तब सुख कहाँ से हो सकता है? यह सुख और दु:ख दोनों ही प्रकृतिस्थ प्राणियों के धर्म हैं, जो कि सब प्रकार के संसर्गदोष को स्वीकार करके उनके अनुसार चलते हैं। जिन्होंने ममता और अहंकार आदि के साथ सब कुछ त्याग दिया है, जिनके पुण्य और पाप सभी निवृत हो चुके हैं, ऐसे पुरुषों का जीवन ही कल्याणमय है। अब मैं राजा के कार्यों में जो सबसे श्रेष्ठ है, उसका वर्णन करता हूँ। जनेश्वर! तुम धैर्ययुक्त बल और दान के द्वारा स्वर्गलोक पर विजय प्राप्त करो। जिसके पास बल और ओज है, वहीं मनुष्य धर्माचरण में समर्थ होता है। नरेश्वर! तुम ब्राह्मणों को सुख पहुँचाने के लिये ही सारी पृथ्वी का पालन करो। जैसे पहले इन ब्राह्मणों पर आक्षेप किया था, वैसे इन सबको अपने सद बर्ताव से प्रसन्न करो। वे बार-बार तुम्हें धिक्कारें और फटकारकर दूर हटा दें तो भी उनमें आत्मदृष्टि रखकर तुम यही निश्चय करो कि अब मैं ब्राह्मणों को नहीं मारुँगा। अपने कर्तव्यपालन के लिये पूरी चेष्टा करते हुए परम कल्याण का साधन करो। परंतप! कोई राजा बर्फ के समान शीतल होता है, कोई अग्नि के समान ताप देने वाला होता है, कोई यमराज के समान भयानक जान पड़ता है, कोई घास-फूस का मूलोच्छेद करने वाले हल के समान दुष्टों का समूल उन्मूलन करने वाला होता है तथा कोई पापाचारियों पर अकस्मात वज्र के समान टूट पड़ता है। कभी मेरा अभाव नहीं हो जाय, ऐसा समझकर राजा को चाहिये कि दुष्ट पुरुषों का संग कभी न करे। न तो उनके किसी विशेष गुण पर आकृष्ट हो, न उनके साथ अविच्छिन्न संबंध स्थापित करे और न उनमें अत्यंत आसक्त ही हो। यदि कोई शास्त्रविरुद्ध कर्म बन जाय तो उसके लिये पश्चाताप करने वाला पुरुष पाप से मुक्त हो जाता है। यदि दूसरी बार पाप बन जाय तो ‘अब फिर ऐसा काम नहीं करुँगा’ ऐसी प्रतिज्ञा करने से वह पापमुक्त हो सकता है। ‘आज से केवल धर्म का ही आचरण करुँगा’ ऐसा नियम लेने से वह तीसरी बार के पाप से छुटकारा पा जाता है और पवित्र तीर्थों में विचरण करने वाला पुरुष अनेक बार के लिये हुए बहुसंख्यक पापों से मुक्त हो जाता है। सुख की अभिलाषा रखने वाले पुरुष को कल्याणकारी कर्मों का अनुष्ठान करना चाहिये। जो सुगन्धित पदार्थों का सेवन करते हैं, उनके शरीर से सुगन्ध निकलती है और जो सदा दुर्गन्ध का सेवन करते हैं, वे अपने शरीर से दुर्गन्ध ही फैलाते हैं। जो मनुष्य तपस्या में तत्पर होता है, वह तत्काल सारे पापों से मुक्त हो जाता है। लगातार एक वर्ष तक अग्निहोत्र करने से कलंकित पुरुष अपने ऊपर लगे हुए कलंक से छूट जाता है। तीन वर्षों तक अग्नि की उपासना करने से भ्रूण हत्यारा भी पापमुक्त हो जाता है। महासरोवर पुष्कर, प्रभास तीर्थ तथा उत्तर मानसरोवर आदि तीर्थों में सौ योजन तक की पैदल यात्रा करने से भी भ्रूणहत्या के पाप से छुटकारा मिल जाता है। प्राणियों की हत्या करने वाला मनुष्य जितने प्राणियों का वध करता है, उसी जाति के उतने ही प्राणियों को मृत्यु से छुटकारा दिला दे अर्थात उनको मरने के संकट से छुड़ा दे तो वह उनकी हत्या के पाप से मुक्त हो जाता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज