दिनेश चन्द (वार्ता | योगदान) छो (दिनेश चन्द ने महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 138 श्लोक 1-16 पृष्ठ [[महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 138 श्लोक 1-1...) |
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16:37, 29 मार्च 2018 के समय का अवतरण
अष्टात्रिंशदधिकशततम(138) अध्याय: शान्ति पर्व (आपद्धर्म पर्व)
महाभारत: शान्ति पर्व: अष्टात्रिंशदधिकशततम अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद
भीष्म जी ने कहा- भरतनन्दन बेटा युधिष्ठिर! तुम्हारा यह विस्तारपूर्वक पूछना बहुत ठीक है। यह सुख की प्राप्ति कराने वाला है। आपत्ति के समय क्या करना चाहिये? यह विषय गोपनीय होने से सबको मालूम नहीं है। तुम यह सब रहस्य मुझसे सुनो। भिन्न-भिन्न कार्यों का ऐसा प्रभाव पड़ता है, जिसके कारण कभी शत्रु भी मित्र बन जाता है और कभी मित्र का मन भी द्वेषभाव से दूषित हो जाता है। वास्तव में शत्रु-मित्र की परिस्थिति सदा एक-सी नहीं रहती है। अत देश-काल को समझकर कर्तव्य-अकर्तव्य का निश्चय करके किसी पर विश्वास और किसी के साथ युद्ध करना चाहिये। भारत! कर्तव्य का विचार करके सदा हित चाहने वाले विद्वान् मित्रों के साथ संधि करनी चाहिये और आवश्यकता पड़नें पर शत्रुओं से भी संधि कर लेनी चाहिये, क्योंकि प्राणों की रक्षा सदा ही कर्तव्य है। भारत! जो मूर्ख मानव शत्रुओं के साथ कभी किसी भी दशा में संधि नहीं करता, वह अपने किसी भी उद्देश्य को सिद्ध नहीं कर सकता और न कोई फल ही पा सकता है। जो स्वार्थ सिद्धि का अवसर देखकर शत्रु से तो संधि कर लेता है और मित्रों के साथ विरोध बढा़ लेता है, वह महान फल प्राप्त कर लेता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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