हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 3 श्लोक 31-37

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 3 श्लोक 31-37

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अर्चिता तु त्रिर्भिर्मासैर्दिव्‍यं चक्षु: प्रयच्‍छसि।
संवत्‍सरेण सिद्धि तु यथाकामं प्रयच्‍छसि।।31।।

सत्‍यं ब्रह्म च दिव्‍यं च द्वैपयनवचो यथा।
नृणां बन्‍धं वधं घोरं पुत्रनाशं धनक्षयम्।।32।।

व्‍याधिमृत्‍युभयं चैव पूजिता शमयिष्‍यसि।
भविष्‍यसि महाभागे वरदा कामरूपिणी।।33।।

मोहयित्‍वा च तं कंसमे का त्‍वं भोक्ष्‍यसे जगत्।
अहमप्‍यात्‍मनो वृत्तिं विधास्‍ये गोषु गोपवत्।।34।।

त्ववृद्धयर्थमहं चैव करिष्ये कंसगोपताम्।
एवं तां स समादित्य गतोऽन्तर्घानमीश्वर:।।35।।

सा चापि तं नमस्‍कृत्‍य तथास्त्विति च निश्चिता।।36

यश्‍चैतत् पठते स्‍तोत्रं श्रृणुयाद् पाप्‍यभीक्ष्‍णश:।
सर्वार्थसिद्धिं लभते नरो नास्‍त्‍यत्र संशय:।।37

इति श्रीमहाभरते खिलभागे हरिवंशे विष्‍णुपर्वणि स्‍वप्‍नगर्भविधाने आर्यास्‍तुतौ तृतीयोअध्‍याय:।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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