हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 127 श्लोक 31-35

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 127 श्लोक 31-35

Prev.png

 

ततो निर्वर्तयित्वात तु विवाहं शत्रुसूदन:।।31।।
अनिरुद्धस्य सुप्रज्ञ: सर्वैर्देवगणैर्वृत:।

आमन्त्र्य वरदं तत्र रुद्रं देवनमस्कृसतम्।।32।।
चकार गमने बुद्धिं कृष्ण: परपुरंजय:।

द्वारकाभिमुखं कृष्णं ज्ञात्वा शत्रुनिषूदनम्।।33।।
कुम्भाण्डो वचनं प्राह प्रांजलिर्मधुसूदनम्।

बाणस्या गावस्तिष्ठन्ति हस्ते तु वरुणस्य वै।।34।।
यासाममृतकल्पं वै क्षीरं क्षरति माधव।

तत पीत्वातिबलश्चैव नरो भवति दुर्जय:।।35।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः