हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 120 श्लोक 41-45

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 120 श्लोक 41-45

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श्रीदेव्युवाच
चक्रायुधो मो‍क्षयितानिरुद्ध त्वां बन्धनादाशु सहस्व कालम्।
छित्त्वा स बाणस्य सहस्रनबाहुं पुरीं निजां नेष्यति दैत्य सूदन:।।41।।

ततोऽनिरुद्ध: पुनरेव देवीं तुष्टाव हृष्ट: शशिकान्‍तवक्त्र ।

अनिरुद्ध उवाच
नमोऽस्तु ते देवि वरप्रदे शिवे नमोऽस्तु ते देवि सुरारिनाशिनि।।42।।

नमोस्तु ते कामचरे सदाशिवे नमोऽस्तु ते सर्वहितैषिणि प्रिये।
नमोऽस्तु ते भीतिकरि द्विषां सदा नमोऽस्तुव ते बन्धनमोक्षकारिणि।।43।।

ब्रह्माणीन्द्रा्णि रुद्राणि भूतभव्युभवे शिवे।
त्राहि मां सर्वभीतिभ्यो नारायणि नमोअस्तु ते।।44।।

नमोऽस्तु ते जगन्नायथे प्रिये दान्ते महाव्रते ।
भक्तिप्रिये जगन्मात: शैलपुत्रि वसुन्ध‍रे।।45।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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