हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 110 श्लोक 46-50

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 110 श्लोक 46-50

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स्थाने त्वांनवारिवाहिन्य: सरितो लोकपावना:।
इमा: समभिगच्छ‍न्ति पत्न्यो लोकनमस्कृता:।।46।।

समुद्रस्त्वेवमुक्तस्तु ततो मामवदद् वच:।
स्वं जलौघतलं भित्त्वा व्युत्थित: पवनेरित:।।47।।

मा मैवं देवगन्धर्व नास्म्याश्चुर्यो द्विजर्षभ।
वसुधेयं मुने धन्या यत्राहमुपरि स्थित:।।48।।
ऋते तु पृथिवीं लोके किमाश्चर्यमत: परम्।

सोऽहं सागरवाक्येन क्षितिं क्षितितले स्थित:।।49।।
कौतूहलसमाविष्टोे ह्यब्रुवं जगतो गतिम्।

धरित्रि देहिनां योने धन्या खल्वसि शोभने।।50।।
आश्चंर्यं चापि भूतेषु महत्या क्षमया युते।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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