हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 110 श्लोक 36-40

हरिवंश पुराण विष्णु पर्व (संस्कृत) अध्याय 110 श्लोक 36-40

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यस्त्वमेवमभेद्याभ्यां कपालाभ्यां समावृत:।
तोये चरसि नि:शंक कंचिदन्यमचिन्तयन्।।36।।

स मामुवाचाम्बुचर: कूर्मो मानुषवत्वचिनयम्।
किमाश्चार्यं मयि मुने धन्यभश्चातहं कथं विभो।।37।।

गंगेयं निम्न‍गा धन्याे किमाश्चरयमत: परम्।
यत्राहमिव सत्त्वानि चरन्यश युतशो द्विज।।38।।

सोऽहं कुतूहलाविष्टो नदीं गंगामुपस्थित:।
धन्यासि त्वंष सरिच्छ्रेष्ठे नित्य माश्चुर्यभूषिता।।39।।

या त्वममेवं महादेहै: श्वा‍पदैरुपशोभिता।
ह्रदिनी सागरं यासि रक्षन्ती तापसालयान्।।40।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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