हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 72 श्लोक 60-66

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: द्विसप्ततितम अध्याय: श्लोक 60-66 का हिन्दी अनुवाद

संसार में लिंग (पुरुषत्व: सूचक चिह्न) से अं‍कित जो भी शरीर-समुदाय है, वह सब त्रिनेत्रधारी भगवान शंकर का स्वरूप है और भग (स्त्रीत्वसूचक) चिह्न से चिह्नित जो शरीर समूह है, वह सब सर्वजननी भगवती उमा का प्रतीक है। इस जगत में इन दो के सिवा तीसरी कोई वस्तु नहीं है। महादेव जी (और उमा) से भिन्न कुछ नहीं है; वे ही सर्वेश्वर हैं। (वे हमारी रक्षा करें)।' इस प्रकार जिनकी स्तुति की जा रही थी, उन धर्मात्मान भगवान वृषभध्वज (शिव) ने धर्मात्माओं में श्रेष्ठ महर्षि कश्यप को दर्शन दिया।

दर्शन देकर देवेश्वर महादेव जी ने उनसे प्रसन्नचित्त से कहा- ‘प्रजापते! तुम जिस कार्य से मेरी स्तुति कर रहे हो, उसे मैं जानता हूँ। इन्द्र और उपेन्द्र दोनों महामनस्वी देवता स्वाभाविक स्थिति में आ जायेंगे; परंतु धर्मात्मा जर्नादन पारिजात-वृक्ष को अवश्य ले जायेंगे। कश्यप! पूर्वकाल में मुनिवर देवशर्मा ने महेन्द्र का अनिष्टचिन्तन किया था; क्योंकि तपस्या से उद्दीप्त तेज वाले उन महर्षि की पत्नी को इन्द्र ने प्राप्त करने की अभिलाषा की थी। यही उनकी वर्तमान पराजय का कारण है।

धर्मज्ञ! तुम दक्षकन्या अदिति के साथ वहाँ इन्द्र भवन में जाओ। तुम्हारे दोनों पुत्रों का अवश्य कल्याण होगा। इस प्रकार भगवान शंकर का कथन सुनकर ब्रह्मकुमार मरीचि के पुत्र अप्रतिम शक्तिशाली विद्वान महर्षि कश्यप उन देवगुरु भगवान रुद्र को प्रणाम करके प्रसन्नचित्त हो देवलोक को चले गये।

इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभांग हरिवंश के अन्तर्गत विष्णु पर्व में पारिजातहरण के प्रसंग कश्यपकृत रुद्रस्तोत्रविषयक बहत्तरवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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