हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 66 श्लोक 16-30

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: षट्षष्टितम अध्याय: श्लोक 16-30 का हिन्दी अनुवाद

उस अत्यन्त अद्भुत सुगन्ध को सूंघकर सत्यभामा को बड़ा विस्मिय हुआ। उन्होंने मुंह पर से कपड़ा हटाया और पूछा, ‘यह क्या है? पवित्र मुस्कान वाली सत्यभामा उठकर बैठ गयीं और अपने पीछे खड़े हुए भगवान श्रीकृष्ण को न देखकर दासियों से पूछने लगीं, 'यह सुगन्ध कहाँ से प्रकट हुई है?' स्वामिनी के इस प्रकार पूछने पर वे कुछ न बोली। धरती पर घुटने टेककर सिर नीचे किये हाथ जोड़कर बैठी रहीं। गन्ध के आश्रयभूत भगवान को न देखकर वे अनुमान करने लगीं कि पृथ्वी ही उस गन्ध को प्रकट कर रही है; परंतु उसको ऐसी उत्कृष्ट गन्ध कैसे हो गयीं, यह बात समझ में नहीं आती तो फिर यह क्या है? ऐसा कहकर जब देवी सत्यभामा ने चारों ओर दृष्टिपात किया।

तब उन्हें सहसा विश्वभावन भगवान श्रीकृष्ण दिखायी दिये। तब सहसा उनके नेत्रों में आंसू भर आये और वे गद्दकण्ठ से उतना ही कह सकीं कि आपके शरीर से ऐसी सुगन्ध का प्रकट होना उचित हीं है। भगवान के प्रति प्रेमभाव से युक्त होने पर भी वे उस समय रोष से कुछ तिक्त-सी हो उठी थीं। उनके मनोहर ओठ फड़कने लगे। उन्होंने लम्बी सांस खींचकर मुंह नीचे कर लिया; फिर कजरारे नेत्रों वाली वे शुभलक्षणा देवी दो घड़ी तक दूसरी ओर मुँह करके बैठ रहीं। फिर अपने मुख को हाथ पर रखकर बायीं भौंह चढ़ाये भली-भाँति दृष्टिपात करके वे श्रीहरि से बोलीं- 'बड़ी शोभा पा रहे हैं आप।' इतना कहकर उनके नेत्रों से प्रणयकोपजनित जल की धारा बहने लगी, मानों कमल के दलों से तुषार का जल गिर रहा हो।

तब कमलनयन श्रीकृष्ण‍ अत्यन्त उतावले ही उछलकर पलंग पर आ गये और प्रियतमा के मुखारविन्द से गिरते हुए अश्रुजल को उन्होंने दोनों हाथ में ले लिया श्रीवत्सचिह्न से सुशोभित कमलनयन भगवान गोविन्द ने प्रिया के नेत्रों से गिरते हुए उस जल को लेकर अपनी छाती में लगा लिया और इस प्रकार कहा- ‘नील कमलदल के समान नेत्रों वाली भामिनी! सुन्दरि! जैसे कमलों से जल टपक रहा हो, उसी तरह तुम्हारे युगल नेत्रों से यह अश्रुजल कैसे गिर रहे हैं?

मनोहारिणी प्रिये! तुम्हारा मुख प्रभातकाल के शोभाहीन पूर्ण चन्द्रमा तथा मध्याह्नकाल के मुरझाये हुए कमल का स्वरूप क्यों धारण करता है? सुश्रोणि! कुंकुम और कुसुम्भ रंग की साड़ी क्यों नहीं धारण करती हो? श्वेत वस्त्र पर ही आज इतना अनुग्रह क्यों है? ये कुसुम्भ और कुंकुम के रंग रंगे हुए युगल वस्त्र हैं, जो तुम्हें बहुत प्रिय हैं। देवपूजा करके देवताओं का विसर्जन कर देने के बाद स्त्री के लिये श्वेत वस्त्र धारण करना अभीष्ट नहीं है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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