हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 60 श्लोक 37-45

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: षष्टितम अध्याय: श्लोक 37-45 का हिन्दी अनुवाद


बल और पराक्रम से युक्त श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी के गर्भ से दस पराक्रमी पुत्र उत्पन्न किये।
जिनके नाम इस प्रकार हैं- चारुदेष्ण, सुदेष्ण, महाबली प्रद्युम्न, सुषेण, चारुगुप्त, चारुबाहु, चारुविन्द, सुचारु, भद्रचारु तथा बलवानों में श्रेष्ठ चारु। इनके सिवा एक कन्या को भी उन्होंने जन्म दिया, जिसका नाम चारुमती था। वे सभी पुत्र धर्म और अर्थ में कुशल, अस्त्र-शस्त्रों के ज्ञाता तथा युद्ध में उन्मत्त होकर लड़ने वाले वीर थे। तदन्तर महाबाहु मधुसूदन ने कल्याण स्वरूपा सद्गुणवती तथा उत्तम कुल में उत्पन्न हुई अन्य आठ पटरानियों के साथ विवाह किया।
जिनके नाम इस प्रकार हैं-

  1. (सूर्य-पुत्री) कालिन्दी
  2. (श्रीकृष्ण की बुआ राजाधिदेवी के गर्भ से अवन्ती देश में उत्पन्न हुई) मित्रविन्दा
  3. (आयोध्या नरेश) नग्नजित की पुत्री सत्या
  4. जाम्बवान् की पुत्री जाम्बवती
  5. इच्छानुसार रूप धारण करने वाली रोहिणी (जिसका दूसरा नाम भद्रा था। केकय नरेश की पुत्री होने से यही कैकेयी कहलाती थी। यह श्रीकृष्ण की बुआ श्रुतकीर्ति की कन्या थी।)
  6. मद्रराज की सुशीला एवं शुभलोचना पुत्री मनोहर मुस्कान वाली लक्ष्मणा
  7. सत्राजित की पुत्री सत्यभामा
  8. राजा शैव्य की तन्वंगी पुत्री (गान्धारी), जो रूप में अप्सरा के समान थी। इनके सिवा सोलह हजार और स्त्रियाँ थी। उन सबके साथ अतुल पराक्रमी श्रीकृष्ण ने एक ही समय उतने ही रूप धारण करके विवाह किया था। उन सबके वस्त्र और आभूषण बहुमूल्य थे। वे सब-के-सब सम्पूर्ण मनोवान्छित भोगों से सम्पन्न तथा सुख भोगने के योग्य थीं। उन सबके गर्भ से श्रीकृष्ण के सहस्रों वीर पुत्र उत्पन्न हुए थे। वे सभी पुत्र शास्त्रार्थ कुशल, बलवान, महारथी, यज्ञकर्ता, पुण्यकर्मा, महान् भाग्यशाली तथा महाबली थे।
इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग हरिवंश के अन्तर्गत विष्णुपर्व में रुक्मिणीहरण विषयक साठवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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