हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 59 श्लोक 68-81

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: एकोनषष्टितम अध्याय: श्लोक 68-81 का हिन्दी अनुवाद


तब क्रोध में भरे हुए पौण्ड्र ने छः बाण मारकर बदला चुकाया और एक भल्ल से कृतवर्मा का धनुष भी काट दिया। निवृत्त शत्रु ने बहुत-से पैने बाण मारकर कलिंगराज को बींध डाला। तब कलिंगराज ने एक तोमर का प्रहार करके उसके कंधे पर घाव कर दिया। पराक्रमी कंक ने हाथी के द्वारा आक्रमण करके अंगराज के हाथी और अंगराज को भी तोमर से घायल कर दिया। तब अंगराज ने भी अनेक बाणों द्वारा कंक को चोट पहुँचायी। उधर चित्रक, श्वफल्क और महारथी सत्यक ने कलिंगराज की सेना को सौ नाराचों से मारकर विदीर्ण कर डाला।

तदनन्तर क्रोध में भरे हुए बलराम ने एक पत्रहीन वृक्ष के द्वारा युद्धस्थल में वंगराज के हाथी और वंगराज को भी काल के गाल में भेज दिया। वंगराज का वध करके पराक्रमी संकर्षण ने धनुष हाथ में ले रथ पर आरूढ़ हो भयंकर नाराचों द्वारा बहुत-से कैशिकों का संहार कर डाला। अत्यन्त कुपित हुए पराक्रमी बलराम ने छः बाणों से करूष देश के अनेक महाधनुर्धरों का वध करके मागधों की विशाल सेना में से सौ चुने हुए वीरों को यमलोक पहुँचा दिया। उन सबका संहार करके महाबाहु बलराम ने जरासंध पर धावा किया। अपनी ओर आते हुए बलराम को मगधराज ने तीन नाराचों से घायल कर दिया। तब मूसलधारी बलदेव ने कुपित हो आठ नाराचों से जरासंध को क्षत-विक्षत कर दिया और उसके सुवर्णभूषित ध्वज को एक भल्ल से काट गिराया।

बाणों की वृष्टि करते और एक-दूसरे को मारते हुए उन वीरों में देवासुर संग्राम के समान घोर युद्ध होने लगा। क्रोध में भरे हुए सहस्रों हाथी हाथियों से, रथ रथों से और रोषावेश से युक्त घुड़सवार घुड़सवारों से भिड़ गये। हाथों में शक्ति, ढाल और तलवार लिये हुए पैदल वीर पैदलों से जूझते और उनके मस्तक काटते हुए युद्ध में पृथक-पृथक विचरने लगे। कवचों पर गिरायी जाती हुई तलवारों और गिरते हुए बाणों का महान शब्द पक्षियों के चहचहाने के समान सुनायी पड़ता था। युद्धस्थल में महामनस्वी वीरों की प्रत्यञ्चा के खींचने और शस्त्रों के टकराने का शब्द भेरी, शंख, मृदंग और वेणुओं की ध्वनि को आच्छादित कर देता था।

इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग हरिवंश के अन्तर्गत विष्णु पर्व में रुक्मिणीहरण विषयक उनसठवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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