हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 55 श्लोक 94-105

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: पञ्चपञ्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 94-105 का हिन्दी अनुवाद

अपने समर-सचिव धैर्यवान गरुड़ को आया देख बलि को बाँधने वाले भगवान श्रीकृष्ण इस प्रकार बोले- ‘पक्षियों में श्रेष्ठ गरुड़! तुम्हारा स्वागत है। देवसेना के शत्रुओं को कुचल देने वाले पक्षिराज! तुम्हारा स्वागत है। विनता के हृदय को आनन्द देने वाले केशवप्रिय गरुड़! तुम्हारा स्वागत है।' तदनन्तर श्रीकृष्ण अपने दूसरे शरीर के समान बैठे हुए विनतानन्दन गरुड़ से अपनी शक्ति के अनुरूप वाणी द्वारा इस प्रकार बोले। श्रीकृष्ण ने कहा- 'पक्षिप्रवर! हम लोग भोजराज के विशाल अन्तःपुर में चलेंगे और वहीं सुखपूर्वक बैठकर मनोगत विषय पर गुप्तरूप से विचार करेंगे।'

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! इसके बाद महापराक्रमी बलराम और श्रीकृष्ण तीसरे गरुड़ को साथ लेकर उक्त भवन में प्रविष्ट हुए और गुप्त विषय पर मन्त्रणा करने लगे। उस समय श्रीकृष्ण बोले- ‘विनतानन्दन! जरासंध को हम लोगों के लिए अवध्य बना दिया गया है (यही दशा कालयवन की भी है) परंतु हमारे उस शत्रु का सैनिक एवं शारीरिक बल बहुत बड़ा है। वह बहुत बड़ी सेना तथा महान नरेशों से घिरा रहता है। उसकी सेनाएँ इतनी अधिक हैं कि हम लोग जरासंध की उस विशाल-वाहिनी का सौ वर्षों में भी संहार नहीं कर सकेंगे। अतः मैं तुमसे कहता हूँ कि अब मथुरापुरी में रहने से हम दोनों का भला नहीं होगा। मेरा तो ऐसा ही विश्वास है।'

गरुड़ बोले- 'देव! आप देवताओं के भी देवता हैं। आपको नमस्कार करके मैं आपके निकट से आप ही के रहने योग्य निवासभूमि का निरीक्षण करने के लिए कुशस्थली की ओर चला गया था। सुरश्रेष्ठ! वहाँ जाकर आकाश का आश्रय ले सब ओर से निरीक्षण करके मैं इस निश्चय पर पहुँचा हूँ कि वहाँ सभी शुभ लक्षणों से सम्पन्न एवं सम्मानित पुरी का निर्माण हो सकता है। कुशस्थली के बहुत से प्रदेश सागर के समीप होने से जलप्राय हैं। वहाँ की भूमि पूर्व और उत्तर की ओर से कुछ ढालू और शीतल है। वह सब ओर से समुद्र के बीच में है, इस कारण वहाँ बसी हुई पुरी का भेदन करना देवताओं के लिए भी असम्भव होगा। वहाँ जो पुरी बनेगी, वह सब प्रकार से रत्नों की खान होगी। वहाँ के वृक्ष सम्पूर्ण मनोवांछित कामनाओं को फल के रूप में प्रदान करने वाले होंगे। सभी ऋतुओं में खिलने वाले फूल उस पुरी की शोभा बढ़ायेंगे। वह सब ओर से अत्यंत मनोहर होगी।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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