हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 55 श्लोक 14-30

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: पञ्चपञ्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 14-30 का हिन्दी अनुवाद


जनमेजय ने पूछा- बहुत-से राजाओं ने मिलकर श्रीकृष्ण का राजेन्द्र पद पर अभिषेक किया है- यह समाचार सुनकर महाबाहु राजा उग्रसेन ने क्या किया?

वैशम्पायन जी ने कहा- बहुत-से श्रेष्ठ नरेशों ने मिलकर श्रीकृष्ण का राजेन्द्र के पद पर अभिषेक किया है। इन्द्र का अभिप्राय निवेदन करने के लिये चित्रांगद दूत बनकर आये थे। एक-एक राजा को एक-एक लाख मुद्राऐं पुरस्कार में दी गयी थी। जो राजेन्द्र था, उसे एक अर्बुद (दस करोड़) दिया गया तथा साधारण मनुष्यों को भी दस-दस हजार रुपये दिये गये। जो वहाँ पहुँच गये थे, वे खाली हाथ घर नहीं लौटे। श्रीमान निधिपति शंख की यादव रूप से उपस्थित हो भगवान श्रीकृष्ण की इच्छा के अनुसार धन देता था और सम्पूर्ण देवता इसका अनुमोदन करते थे।

यह समाचार आत्मीयजनों से सुनकर तथा लोक वृत्तान्त की जानकारी कराने वाले गुप्तचर के मुख से जानकर उग्रसेन ने देव मन्दिरों में विशेष रूप से पूजा की व्यवस्था करायी। वसुदेव के भवन के दोनों बगल में तोरण लगे और सब ओर नटों के नाच-गान होने और बाजे बजने लगे। राजा उग्रसेन ने कंसराज की सभा को विचित्र वस्त्रों से सुसज्जित तथा ध्वजा पताका एवं मालाओं से अलंकृत कराया। भोजराज ने सब ओर भाँति-भाँति की पताकाऐं लगवायीं और प्रत्येक फाटक एवं गोपर को चूने से लिपवाया। इस प्रकार राजेन्द्र उग्रसेन ने राजेन्द्र श्रीकृष्ण के‍ लिये सिंहासन और भवन तैयार करवाया। राजेन्द्र! नगर में चारों ओर नाच-गान होने और बाजे बजने लगे।

राजमार्गों पर चन्दन युक्त जल का छिड़काव किया गया था और वहाँ चारों ओर जल से भरे हुए कलश रखे गये थे। उन कलशों को पताकाओं और वनमालाओं से अलंकृत किया गया था। राजा उग्रसेन ने भूतल पर पाँवड़े के रूप में वस्त्र बिछवा दिये और वहाँ फूलों की मालाऐं रखवा दी थीं तथा सड़कों के दोनों बगल चन्दन, अगुरु और गुग्गुल की धूप जलवायी। जहाँ-तहाँ राल और गुड़ जलाये जा रहे थे। बूढ़ी स्त्रियों के समुदाय स्थान-स्था‍न पर स्तुति और मंगल गाते थे। उनके साथ ही युवतियां अपने-अपने घरों अर्घ्य सजाकर श्रीकृष्ण के शुभागमन की बाट जोह रही थीं।

इस प्रकार राजा उग्रसेन नगर में आनन्दोत्सव की व्यवस्था करके वसुदेव के घर पर चले गये और श्रीकृष्ण के अभिषेक तथा आगमन का प्रिय समाचार निवेदन करके बलराम के साथ सलाहकार श्रीकृष्ण के रथ के निकट चले। राजन! नरेश्वर! इस बीच में बड़े जोर से शंख-ध्वनि सुनायी दी। पाञ्चजन्य का गम्भीर नाद सुनकर मधुपुरवासी स्त्री, बालाक, वृद्ध, सूत, मागध और बन्दी बलराम जी को आगे करके विशाल सेना के साथ अर्घ्य-पाद्य आदि लिये नगर से बाहर निकले। इन सबके साथ बुद्धिमान राजा उग्रसेन भी थे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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