हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 51 श्लोक 26-39

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: एकपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 26-39 का हिन्दी अनुवाद

श्रीकृष्ण बोले– 'महामते नरेश्वर! आप केवल बातें बनाते हैं। इससे क्या होगा? अनघ! आप अपनी कन्या किसी को देंगे या नहीं– इस विषय में आपको रोकने वाला कौन हैं? आप दूसरे को कन्या न दीजिये, मुझे ही दीजिये’ यह दोनों प्रकार की बातें मुझे नहीं कहनी चाहिये। रुक्मिणी दिव्य रुपधारिणी देवी है, उसकी यह दिव्यता ही उसके साथ मेरे भावी सम्बन्ध में कारण है। पूर्वकाल में मेरु पर्वत के शिखर पर एकत्र हुए देवताओं ने अपने-अपने अंश को भूतल पर उतारा था। उस समय ब्रह्मा जी ने लक्ष्मी से कहा– ‘देवि! तुम भी अपने पति के साथ जाओ और मनुष्य लोक में कुण्डिनपुर के भीतर राजा भीष्मक की रानी के गर्भ से जन्म लो। विपुलश्रोणि! इन्द्र पर कृपा करके तुम्हें ऐसा करना चाहिये।

राजन! इसीलिये मैं आप से स्वाभाविक बात कह रहा हूँ, इसमें कहीं कृत्रिमता या बनावट नहीं है। इस बात को सुनकर आपकी कन्या रुक्मिणी स्वयं ही अपने कर्तव्य का निश्चय करके जो उचित समझेगी, वह करेगी; क्‍योंकि वह साधारण स्त्री नहीं है, यह साक्षात लक्ष्मी है और किसी कारणवश ब्रह्मा जी के कहने से यहाँ प्रकट हुई है। वह नरेन्द्रों के सामने स्वयंवर विधि का पालन करने योग्य नहीं है। एक कन्या को एक ही वर के हाथ में देना चाहिये– यही सिद्धान्तभूत सुस्थिर धर्म है। राजन! आप उस लक्ष्मी को स्वयंवर में नहीं दे सकते। किसी योग्य वर को देखकर धर्मपूर्वक उसके हाथ में उसका दान कर देना ही आपके लिये उचित है। इसीलिये देवराज इन्द्र से प्रेरित होकर यह विनतानन्दन गरुड़ इस स्वयंवर में विघ्न डालने हेतु कुण्डिनपुर में पधारे हैं।

मैं राजाओं के इस महान उत्सव को तथा बिना कमल की लक्ष्मीरुपा इस परम सुन्दरी राजकन्या को देखने की इच्छा से यहाँ आया था। राजन! पृथ्वीनाथ! आपने जो मेरे सामने यह बात कही कि मेरा अपराध क्षमा करना चाहिये, सो ठीक है। मैं इसे युक्ति संगत मानता हूँ। इसमें दुर्भाव का कोई कारण नहीं है। विभो! इस विषय में तो मैं पहले ही कह चुका हूँ कि आपके राज्य में सौम्यरुप से आया हूँ (विरोधीरुप से नहीं)। इसी से आपको समझ लेना चाहिये कि मैंने क्षमा कर दी है। राजन! क्षमाशील पुरुषों में बहुत-से गुण प्रकट होते हैं। क्षमा सब दोषों को हर लेने वाली है। मुझ जैसे पुरुष के हृदय में दुर्भाव कैसे रह सकता है। नरेश्वर! आप भी कुलीन, सत्त्वगुण-सम्पन्न, धर्मज्ञ और सत्यवादी हैं। इस भूतल पर आप जैसे पुरुष के हृदय में कलुष भाव कैसे टिक सकता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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