हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 50 श्लोक 9-21

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: पञ्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 9-21 का हिन्दी अनुवाद


भगवान के पास पहुँचकर विदर्भ नगर के स्वामी वे दोनों महाभाग वीर उन श्रीहरि को शिर झुकाकर प्रणाम करने के पश्चात उनसे इस प्रकार बोले- ‘भगवन! आज आप हमारे घर पधारे, इससे हम दोनों का जीवन सफल हो गया, हमारा यश भी सफल हो गया और हमारे सम्पूर्ण पितर भी तृप्त हो गये। यह चामर, व्यजन, छत्र, ध्वज, सिंहासन, सेना तथा समृद्धिशाली कोष से परिपूर्ण यह पुरी हम दोनों भाइयों के साथ आपकी सेवा में समर्पित है- हम सब आपके हैं। महाबाहो! आप उपेन्द्र हैं। साक्षात देवेन्द्र ने आपका अभिषेक किया है। हम भी इस राज्य पर आपका अभिषेक करते हैं- सारा राज्य आपको दे रहे हैं। हम दोनों ने जो आपका अभिषेक रूप कार्य कर दिया है, उसे बहुत-से भूपाल अथवा स्वयं राजा जरासंध भी अन्यथा नहीं कर सकता।

मगधदेश का अधिपति महातेजस्वी राजा जरासंध आपका शत्रु है। उसने आपके विरुद्ध होकर राजाओं को अभय प्रदान किया है। वह प्रतिदिन आपके सम्बन्ध में इस तरह की बातें किया करता है। "कोई भी सिंहासन श्रीकृष्ण के बैठने योग्य नहीं है (क्योंकि इस पर मूर्धाभिषिक्त नरेश ही बैठ सकते हैं), इनका कोई नगर या राजधानी भी नहीं है, अतः देवकीनन्दन श्रीकृष्ण राजाओं के इस समाज में सिंहासन पर कैसे बैठेंगे। श्रीकृष्ण भी महापराक्रमी, अभिमानी और महातेजस्वी हैं। वे कन्या के लिये इस स्वयंवर में कदापि नहीं पधारेंगे। जब राजा लोग अपने सिंहासनों पर बैठे होंगे, उस समय वहाँ महातेजस्वी श्रीकृष्ण नीच आसनों पर कैसे बैठेंगे"। इस प्रकार पूछे जाने पर राजा भीष्मक ने उसकी बात सुनकर हम दोनों के साथ सलाह की और कलह की शान्ति के लिये उन्होंने आपके विश्राम के लिये इस उत्तम भवन का निर्माण कराया है।

प्रभो! आप देवताओं के भी आदिदेव हैं। समस्त संसार आपके चरणों में मस्तक झुकाता है। आप मर्त्यलोक में इस मानव-जगत में राजा ही नहीं, राजेन्द्र बनकर रहिये, जिससे नरेन्द्रों के समुदाय में आसन का संकट (सिंहासन पर बैठने के प्रश्न को लेकर विवाद) उपस्थित न हो। महातेजस्वी गोविन्द! विदर्भनगर में इन राजाओं की राजेन्द्रता को आप विचलित कर दीजिये और कल प्रातःकाल रंग-भूमि में एक उज्ज्वल सिंहासन पर विराजमान होइये।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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