हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 50 श्लोक 32-43

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: पञ्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 32-43 का हिन्दी अनुवाद

ये आठ अक्षय कलश हैं, जो निधियों के अंश से उत्पन्न हुए हैं। ये राजाधिराज महात्मा धनेश (कुबेर) के कलश दिव्य कलश हैं, जो सुवर्ण और रत्नों से सम्पन्न हैं। इनके आभूषण और आसन भी दिव्य हैं। ये कलश श्रीकृष्ण का राजेन्द्र पद पर अभिषेक करने के लिये राजाओं के साथ आ रहे हैं। नरेश्वरों! यह मैंने आप लोगों से इन्द्र का संदेश सुनाया है। अतः आप लोग इस लिखित आज्ञापत्र के द्वारा सब राजाओं को बुलाकर भगवान श्रीकृष्ण का अभिषेक करें।

कैशिक ने कहा- ऐसी प्रेरणा देकर तथा श्रीकृष्ण के लिये प्रातःकालीन सूर्य के समान कान्तिमान सिंहासन समर्पित करके वह आकाश में स्थित हुआ देवदूत स्वर्गलोक को चला गया। इसलिये मैं आप लोगों को श्रीकृष्ण का अभिषेक करने के लिये प्रेरित कर रहा हूँ। आपमें से जो लोग यहाँ पधारे हैं, उन सब के लिये साक्षात इन्द्र के द्वारा दी गयी इस आज्ञा का उल्लंघन करना अत्यन्त कठिन एवं भयंकर है। आकाश से आठ कलशों द्वारा श्रीकृष्ण का स्वयं ही अभिषेक होगा- यह अद्भुत दृश्य पृथ्वी पर सर्वथा दुर्लभ है। आप लोगों को भी यह दर्शनीय उत्सव अवश्य देखना चाहिये। इस आश्चर्यजनक दृश्य को देखकर हम सब लोगों का पाप निश्चय ही दूर हो जायगा।

श्रेष्ठ नरपतियों! आप लोग देवाधिदेव विष्णुस्वरूप श्रीकृष्ण को नहलाने के लिये आइये। उनसे भय न कीजिये। हमने आप लोगों के लिये जनार्दन से संधि कर ली है। भगवान श्रीहरि समस्त नरेशों को अभयदान कर रहे है। हमने श्रीकृष्ण के स्वरूप को अच्छी तरह देख और समझ लिया है। आप लोगों के प्रति इनका भाव सर्वथा शुद्ध है। विशेषतः मगधराज जरासंध के लिये उनके हृदय में तनिक भी वैर नहीं दिखायी देता है। इसलिये यहाँ जो कार्यकारण उपस्थित है, उस पर आप लोग अच्छी तरह विचार कर लें।

वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! ऐसी बात सुनकर वे राजा शाप के भय से पीड़ित हो नाना प्रकार की चिन्ताएँ करने लगे। इतने में ही उन राजेन्द्रों ने महात्मा केशव के निमित्त पुनः आकाशवाणी सुनी। देवराज के शासन से किसी अदृश्य व्यक्ति ने मेघ के समान गम्भीर ध्वनि से आकाश को पूर्ण करते हुए इस प्रकार कहा।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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