हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: त्रिचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 86-98 का हिन्दी अनुवादये दो श्रेष्ठ रथ मैंने तुम दोनों भाइयों के लिए तैयार कराए हैं। इनमें शीघ्रगामी घोड़े जुते हुए हैं। इसके सभी अंग पहिये, धुरे और कूबर आदि सुदृढ़ हैं। तुम्हारा भला हो। तुम बलदेव के साथ शीघ्र रथ पर आरूढ़ हो जाओ। हमें करवीरपुर में निवास करने वाले राजा शृगाल से मिलने के लिए जल्दी लगी हुई है।' वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! उस समय अपने फूफा चेदिराज दमघोष का यह वचन सुनकर जगद्गुरु श्रीकृष्ण के मन में बड़ी प्रसन्नता हुई। वे बोले- 'अहो! हम लोग युद्ध से संतप्त हो गए थे। आपने एक आत्मीय बंधु की भाँति आकर अपने देशकालोचित वचनरूपी जल से हमें नहला दिया है। चेदिराज! इस जगत में देशकाल के अनुरूप हितकर और मधुर वचन बोलने वाले लोग दुर्लभ हैं। चेदिनाथ! आपके दर्शन से हम दोनों सनाथ हो गए। जब हमारे आप जैसे बंधु यहाँ मौजूद हैं, तब यहाँ हमारे लिए कुछ भी अप्राप्य नहीं है। चेदिकुल भूषण! हम दोनों आपसे सनाथ होकर जरासन्ध तथा उसके समान जो दूसरे राजा हैं, उन सबको मौत के घाट उतार देने में समर्थ हैं। चेदिप्रवर! समस्त राजाओं में आप ही यदुवंशियों के प्रथम बंधु हैं। अब से आपको बहुत से संग्राम देखने को मिलेंगे। युद्ध से जीवन निर्वाह करने वाले जो राजा इस लोक में जीवित रहेंगे, वे आज के इस चाक्र, मौसल युद्ध की सदा चर्चा करेंगे। पर्वतों में श्रेष्ठ गोमन्त के समीप युद्ध में हमारे द्वारा जो यह राजाओं की पराजय हुई है, इसके सुनने अथवा स्मरण करने से भी मनुष्य स्वर्ग लोग में जाएंगे। अत: महाराज चेदिराज! अब हम लोग आपके बताए हुए मार्ग से अपने कल्याण के लिए उत्तम नगर करवीपुर को चलें।' तदनन्तर वे सब–के–सब तीन मूर्तिमान अग्नियों के समान रथ पर आरूढ़ हो हवा की भांत उड़ने वाले घोड़ों द्वारा विशाल मार्ग पर चल दिए। वे देवोपम वीर मार्ग में तीन रात निवास करके उत्तम करवीरपुर में जा पहुँचे। वहाँ उन्होंने अपने भले के लिए एक सुखद स्थान पर डेरा डाला। इस प्रकार श्री महाभारत के खिलभाग हरिवंश अंतर्गत विष्णु पर्व में श्रीकृष्ण आदि का करवीरपुर में गमन विषयक तैंतालीसवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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