हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 42 श्लोक 12-26

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: द्विचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 12-26 का हिन्दी अनुवाद

जरासन्ध आदि समस्त भूपाल अपनी सेना के साथ उस पर्वत को चारों ओर से घेर कर छावनी डालने की तैयारी करने लगे। वहाँ डेरा डाले हुए जरासन्ध के सैनिक शिविर की शोभा वैसी ही प्रतीत होती थी, जैसा कि शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को अपनी उत्ताल तरंगों से परिपूर्ण हुए महासागर का रूप देखने में आता है। तदनन्तर रात बीतने पर सब राजा उठे और मंगलाचार से संपन्न हो युद्ध की लालसा से गोमन्त पर्वत पर चढ़ने के लिए एकत्र होने लगे। पर्वत के शिखरों पर एकत्र हो वे सभी राजा बैठे और युद्ध के सुभ अवसर के लिए उत्सुक हो आपस में मंत्रणा करने लगे।

सेनासहित इन नरेशों की तुमुल ध्वनि प्रलय काल में मर्यादा को तोड़ कर बहने वाले समुद्र की भयंकर गर्जना के समान सुनाई देती थी। उन राजाओं के छड़ीदार बूढ़े सिपाही चोगा और पगड़ी धारण किए तथा हाथ में बेंत लिए राजाज्ञा से यह कहते हुए विचरने लगे कि सब लोग मौन रहें। कोई एक शब्द न बोले उस समय नीरव और निश्चल हुए उस सैन्य समूह का रूप उस शब्द हीन प्रशांत महासागर के समान प्रतीत होता, जिसके मत्स्य और भुजंग जल के भीतर वलीन हो गए हों। वह सैन्य सागर मानो योगबल से जब सहसा नीरव तथा निश्चल हो गया, तब बृहस्पति के समान नीतिज्ञ जरासन्ध ने यह महत्त्वपूर्ण बात कही- 'राजाओं की सेनाएं शीघ्र ही आक्रमण करें और सब ओर से सैनिक समूह इस पर्वत को घेर लें। पत्थरों के गोले बरसाने वाले यंत्र लगा दिए जाएं।

क्षेपणीय (गोफना या ढेलवांस) तथा मुद्गर संभाल लिए जाएं। प्राश और तोमर भी ऊपर कर लिए जाएं। शत्रुओं के शहस्त्र प्रहार को नष्ट करने में समर्थ सुदृढ़ और हल के गोलों को ऊपर फेंकने के लिए हमारे शिल्पी शीघ्र तैयार करें। परस्पर प्रमत्त होकर युद्ध करने वाले शूरवीरों के लिए जैसा राजा दमघोष कहें, शीघ्र वैसा ही प्रबंध किया जाए उत्तम पर्वत को टंक समूहों और खनित्रों से खोदकर विदीर्ण कर डाला जाए। युद्ध की प्रणाली के जानकार नरेशों को इसके समीप ही यथास्थान खड़ा किया जाए। आज से मेरे सैनिक इस पर्वत पर घेरा डाल दें और इसे तब तक चालू रहें, जब तक कि हम इन दोनों वसुदेव पुत्रों को मार न डालें। शिलाओं से ही उत्पन्न हुआ (अथवा शिलाओं का उत्पादक) यह पर्वत स्वयं तो अचल है ही, इस पर रहने वाले पक्षियों को भी सायकों द्वारा अचल (हिलने–डुलने या उड़ने में असमर्थ) कर दिया जाए। आकाश को भी बाण समूहों से इस तरह रूंध दिया जाए कि उसमें पक्षी भी न उड़ सकें।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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