हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 41 श्लोक 49-62

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: चत्वाथरिंश अध्याय: श्लोक 49-62 का हिन्दी अनुवाद

अहो! राजाओं के रथों पर विराजमान जो ये श्वेत वर्ण वाली ऊँची छत्र–पंक्तियाँ हम लोगों की और बढ़ी आ रही हैं, ये आकाश में उज्ज्वल हंस पंक्तियों के समान सुशोभित होती हैं। अहो! इन निर्मल प्रभा वाले शस्त्रों की चमक से आकाश का मुख भी उज्ज्वल एवं प्रकाशित हो उठा है। शस्त्रों की ये दीप्तियां सूर्य देव की किरणों से मिलकर दसों दिशाओं में विचरती–सी प्रतीत होती हैं।

निश्चय ही समरांगण में भूमिपालों द्वारा मुझ पर चलाए गए। ये समस्त अस्त्र-शस्त्र नष्ट हो जाएंगे। राजा जरासन्ध ठीक समय पर आया है। हम लोगों के युद्ध–कौशल की कसौटी है तथा समरांगण का पहला अतिथि है। आर्य! हम दोनों साथ रहें। राजा जरासन्ध के आने से पहले अभी हमें युद्ध आरंभ नहीं करना चाहिए। जब तक वह नहीं आता है, तब तक हम उसके बल का विचार कर लें।'

ऐसे कहकर श्रीकृष्ण स्वस्थभाव से संग्राम की इच्छा रखकर जरासन्ध का वध चाहते हुए उसके सैनिक–बल का निरीक्षण करने लगे। उन सब राजाओं का निरीक्षण करते हुए अविनाशी यदुकुलतिलक भगवान श्रीकृष्ण स्वयं ही अपने-आप से कहने लगे– 'अहो! दिव्य लोक में देवताओं के साथ बैठकर जो गुप्त मंत्रणा की गई थी, उसके अनुसार ये भूमिपाल राजोचित्त मार्ग पर स्थित हैं।

ये शास्त्रोक्त विधि से संग्राम में विनाश को प्राप्त होंगे। मैं तो समझता हूँ कि मृत्यु ने रण यज्ञ में आहुति देने के लिए इन श्रेष्ठ राजाओं का प्रोक्षण कर लिया है। इनके स्वर्गगामी शरीर अभी से प्रकाशित हो रहे हैं। यह पृथ्वी इन राजसिंहों के सैन्य समूहों से पीड़ित हो इनके भार से थककर जो देव लोक में गई थी, वह इसका जाना उचित ही था। अब थोड़े ही समय में यह भूमंडल इन राज समूहों से खाली हो जाएगा और आकाश भर जाएगा।

इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग हरिवंश के अंतर्गत विष्णु पर्व में जरासन्ध का अभियान विषयक इकतालीसवां अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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