हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 31 श्लोक 47-59

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: एकत्रिंश अध्याय: श्लोक 47-59 का हिन्दी अनुवाद

वह महाराज! अब हम लोग इसके लिये मृत्‍यु कालोचित कर्म करें; क्‍योंकि यह यमलोक में जाकर प्रेतत्त्‍व को प्राप्त हुआ है। राज्‍य का उपभोग तो वीर पुरुष ही करते हैं। हम लोग तो अब पराजित हो गये; अत: जाइये, कृष्‍ण को यह सूचित कीजिये कि कंस के अन्‍त्‍येष्टि-संस्‍कार की व्‍यवस्‍था होनी चाहिये। शत्रु के मरने तक ही वैर रहता है। उसके शान्‍त हो जाने पर अब वैर की भी शान्ति हो ही जायगी। इसके प्रेतकार्य तो करने चाहिये। मरा हुआ क्‍या अपराध करता है’। अपने पति भोजराज से ऐसा कहकर दु:खिनी राजमाता पुत्र की मुख निहारती हुई अपने केश खींच-खींचकर अत्‍यन्‍त विलाप करने लगी।

‘राजन ये सुख में पली हुई तुम्‍हारी रानियां अब क्‍या करेंगी। तुम्‍हारे-जैसे श्रेष्ठ पति को पाकर भी इन बेचारी बहुओं का सारा मनोरथ नष्ट हो गया। ये तुम्‍हारे बूढ़े पिता अब श्रीकृष्‍ण के अधीन हो गये। सूखते हुए पोखरे के जल की भाँति अब मैं इन्‍हें परतन्‍त्र-दशा में कैसे देख सकूंगी। बेटा! मैं तुम्‍हारी जननी हूँ। मुझसे क्‍यों नहीं बोलते हो? क्‍यों आज अपने प्रियजनों का परित्‍याग करके तुमने परलोक के विशाल पथ को प्रस्‍थान किया है?

अहो वीर! तुम नीतिकुशल नरेश थे, मेरी सम्‍पत्ति थे; किंतु सदा समीप रहने वाला काल आज तुम्‍हें मुझ अभागिनी की गोद से छीनकर लिये जा रहा है। कितने ही कुलों (परिवारों)- के समुदाय का पालन करने वाले मेरे वीर पुत्र! तुमने जिन्‍हें दान और मान से अनुगृहीत कर रखा था, जो तुम्‍हारे उन गुणों से अत्‍यन्‍त संतुष्ट थे, वे ही ये तुम्‍हारे भृत्‍यों के कुलों के लोग आज तुम्‍हारे लिये रो रहे हैं। नरश्रेष्ठ उठो! महाबाहो! महाबली वीर! इन दीन दु:खी लोगों की और समस्‍त नगर की अन्‍त:पुर के समान ही रक्षा करो।' अत्‍यन्‍त आर्त होकर उसके विस्‍तृत गुणों को याद करके कंस की स्त्रियों और माता के रोते-रोते संध्‍या हो गयी और संध्‍याकालीन अरुण-राग से रञ्जित हुए दिवाकर (सूर्य) अस्‍ताचल को चले गये।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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