हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: अष्टाविंश अध्याय: श्लोक 90-108 का हिन्दी अनुवाददो घड़ी तक ध्यान करने मन से उसने ज्ञान बल से देख लिया कि यह राजा उग्रसेन की पत्नी है। यह जानकर उसे बड़ा हर्ष हुआ। फिर तो उसने अपना रूप बदलकर उग्रसेन का रुप धारण कर लिया तत्पश्चात वह अमित पराक्रमी महाबाहु दानव राज हँसता हुआ उसके पास गया, फिर धीरे-धीरे मुस्कराते हुए ही उसने उसे अपनी भुजाओं में कस लिया। इस प्रकार उग्रसेन ही रुप से उसने तुम्हारी माता का सतीत्व भंग किया। पति के प्रति हृदय में अत्यन्त स्नेह रखने के कारण वह देवी बड़े प्रेम से उसकी सेवा में उपस्थित हुई। पीछे उसके शरीर के भारीपन का अनुभव करके वह शशंकित हो उठी। उठकर भयभीत हो उसने उससे कहा– निश्चय ही तू मेरा पति नहीं है; अत: बता, तू किसका दुराचारी पुत्र है, जिसने मुझे कलंकित कर दिया? नीच! तूने मेरे पति का रुप धारण करके अपने नीच कर्म से मेरे पतिव्रत्य को दूषित कर दिया। अब रोष में भरे हुए मेरे बन्धु-बान्धव मुझ कुल-कलंकिनी को क्या कहेंगे? मुझे पति पक्ष के लोगों से निन्दित और तिरस्कृत होकर रहना पड़ेगा। तू ऐसा असहनशील, दूषित कुल में उत्पन्न, अजितेन्द्रिय, अविश्वसनीय, अनार्य तथा परस्त्री को कलंकित करने वाला है, तुझे धिक्कार हैं। जब इस प्रकार धिक्कार देती हुई वह उससे उलझ पड़ी, तब उसके आक्षेप सुनकर उस दानव ने क्रोधपूर्वक कहा– मूढ़ नारी! तू अपने को बड़ी विदुषी मानती है? अरी! मैं सौभ विमान का अधिपति ओजस्वी दानव द्रुमिल हूँ, तू मृत्यु के वश में रहने वाले तुच्छ मानव-पति का आश्रय लेकर रोषपूर्वक मेरे ऊपर आक्षेप क्यों करती है? स्त्री के सम्मान पर गर्व करने वाली नारी! (देवताओं और दानवों के साथ) विवशतापूर्वक व्यभिचार घटित होने से स्त्रियाँ दूषित नहीं होती हैं। इन स्त्रियों की विशेषत: मानवी स्त्रियों की बुद्धि निश्चल नहीं होती। सुनने में आता है कि बहुतेरी स्त्रियाँ व्यभिचार रूप दोष बन जाने पर भी अविचल पराक्रमी देवोपम पुत्रों की जननी हुई हैं। स्त्री–जगत में एक तू ही तो बड़ी पतिधर्म परायणा और दूध की धोयी हुई शुद्ध सती है, जो अपने केश-कलापों को कम्पित करती हुई जो-जो चाहती है, बकती चली जा रही है। मतवाली स्त्री! तुमने जो मुझसे यह पूछा है कि– 'कस्य त्वम् किसका पुत्र है’ इससे तुम्हें कंस नामक शत्रुनाशक पुत्र प्राप्त होगा’। यह सुनकर वह देवी पुन: रोष में भरकर उसके उस वर की निन्दा करने लगी और ढिठाई के साथ बात करने वाले उस दानव से व्यथित होकर बोली- दुराचारी दानव! तेरे इस घृणित आचार को धिक्कार है, जो तू संसार की सारी स्त्रियों की निन्दा कर रहा है। माना कि जगत में नीच आचार-विचार वाली स्त्रियाँ भी है, परंतु पतिव्रताएँ भी कम नहीं हैं। कुलाधम! अरुन्धती आदि जो पतिव्रता स्त्रियाँ सुनी जाती हैं, उनका स्मरण कर! जिन्होंने समस्त प्रजाओं तथा सम्पूर्ण लोकों को अपने सतीत्व के बल से ही धारण किया है। तूने जो मुझे सदाचार नाशक पुत्र प्रदान किया है, इसके प्रति मेरे मन में अधिक आदर नहीं है। इस विषय में मैं जो कुछ कहती हूँ, उसे सुन ले। नीच! अब मेरे पति के कुल में परम पुरुष परमेश्वर अवतार लेंगे जो तेरी तथा तूने जो पुत्र दिया है, उसकी भी मृत्यु के कारण होंगे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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