हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 27 श्लोक 57-62

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: सप्‍तविंश अध्याय: श्लोक 57-62 का हिन्दी अनुवाद


उस बाहुशाली वीर के खींचने पर वह बाण रहित धनुष मुट्ठी पकड़ने की जगह से धड़ाके के साथ टूटकर दो टूक हो गया। धनुष टूटने की आवाज से धरती हिलने लगी, सूर्य की प्रभा फीकी पड़ गयी और आकाश घूमता-सा प्रतीत होने लगा। वह महान अद्भुत दृश्‍य देखकर मैं अत्‍यन्‍त विस्‍मय में पड़ गया और भयदायक शत्रुओं की ओर से भय प्राप्‍त होने की आशंका से आपको यह समाचार बताने के लिये यहाँ आ गया। महाराज! मैं नहीं जानता, वे दोनों अमित पराक्रमी वीर कौन थे? उनमें से एक तो कैलास पर्वत के समान श्‍वेतवर्ण का था और दूसरा अंजनगिरि के समान श्‍याम। हाथी बांधने के खम्‍भे की भाँति अत्‍यन्‍त सुदृढ़ उस धनुष रत्‍न को तोड़कर वह अमित पराक्रमी वीर अपने सहायक के साथ ही वायु के समान तीव्रगति का आश्रय ले वहाँ से निकल गया। नरेश्‍वर! न जाने वह कौन था, जो धनुष के दो टुकड़े करके चला गया।' कंस को सब बातें विस्‍तारपूर्वक विदित थीं। उसने धनुष भंग का समाचार सुनते ही शस्‍त्र रक्षक को विदा कर दिया और स्‍वयं अपने उत्‍तम भवन में प्रवेश किया।

इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग हरिवंश के अन्‍तर्गत विष्‍णु पर्व में कंस के धनुष का भंग विषयक सत्‍ताईसवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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