हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 12 श्लोक 44-49

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: द्वादशा अध्याय: श्लोक 44-49 का हिन्दी अनुवाद


जब वह सर्प हार मानकर चला गया और श्रीकृष्‍ण जल से निकलकर किनारे खड़े हो गये, तब सब गोप आश्चर्य से चकित हो उनकी स्‍तुति और परिक्रमा करने लगे। समस्‍त वनचारी गोपों ने अत्‍यन्‍त प्रसन्न होकर नन्‍दगोप से कहा- 'गोपराज! आप धन्‍य हैं, आप पर भगवान की बड़ी भारी कृपा है, जिससे आपको ऐसा पुत्र मिला। निष्‍पाद नन्‍द! आज से सभी आपदाओं के समय गोपों, गौओं और गोष्ठ (व्रज)- के लिये ये विशाललोचन भगवान श्रीकृष्ण ही शरणदाता और स्‍वामी हैं। मुनियों से सेवित समस्‍त यमुना का जल अब सबके लिये सुखद एवं मंगलमय हो गया। अब हमारी गौएं सदा इसके तट पर चरती-फिरती रहेंगी। हम वन में रहने वाले गंवार-ग्‍वारियां हैं’– यह बात स्‍पष्‍ट ही सत्‍य दिखायी देती है; क्‍योंकि ऐसी महान आत्‍मा श्रीकृष्‍ण राख में छिपी हुई आग की तरह व्रज में विद्यमान हैं, परंतु हम इनके महत्त्व को समझते ही नहीं हैं। इस प्रकार वे विस्मित हुए समस्‍त गोपगण अविनाशी भगवान श्रीकृष्‍ण की स्‍तुति करते हुए गोष्ठ में चले गये, मानो देवता चैत्ररथ वन में गये हों।

इस प्रकार श्रीमहाभारत खिलभाग हरिवंश के अन्‍तर्गत विष्‍णुपर्व में बाललीला के प्रसंग में कालियदमन विषयक बारहवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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