हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 121 श्लोक 83-104

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: एकविंशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 83-104 का हिन्दी अनुवाद


वहाँ अनिरुद्ध और बाणासुर दोनों में अत्यन्त भयंकर महान युद्ध हुआ। ठीक उसी तरह, जैसे देवासुर-संग्राम में बलि और इन्द्र का युद्ध हुआ था। मैंने भी उस महान एवं अद्भुत युद्ध को अपनी आँखों देखा है। युद्ध से पीछे न हटने वाले बाणासुर ने भयभीत होकर माया का सहारा लिया और नागपाश से महाबली अनिरुद्ध को बाँध लिया। गरुड़ध्वज! उस समय उसने अनिरुद्ध के वध की आज्ञा दे दी, परंतु उसके मंत्री कुम्भाण्ड ने उसे वैसा करने से रोक दिया। युद्ध में आसक्त हुए बाणासुर ने माया का सहारा लेकर सर्पमय बाणों द्वारा कुमार अनिरुद्ध को बाँधा है, अत: अब आप यश और विजय के लिये शीघ्र उठिये। तात! विजय की अभिलाषा रखने वाले वीरों के लिये यह अपने प्राणों को बचाकर बैठने का समय नहीं है। वीर पुरुष प्राणों के कुछ संकट में पड़ जाने पर धैर्य का सहारा लेकर शत्रु के सामने डटा रहता है।' वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन! उनके ऐसा कहने पर पराक्रमी एवं प्रतापी वसुदेवनन्दन श्रीकृष्ण ने रणयात्रा के लिये उपयुक्त सामग्री तैयार करने की आज्ञा दे दी। तदनन्तर महाबाहु जनार्दन यात्रा के लिये घर से बाहर निकले। उस समय उनके पुर चारों ओर से चन्दनपूर्ण और लावा बिखेरे जा रहे थे।

इतने में ही नारद जी बोले- माधव! विनतानन्दन गरुड़ का स्मरण कीजिये। महाबाहो! उनके सिवा दूसरा कोई उस मार्ग पर नहीं जा सकता। जनार्दन! मेरी बात सुनिये। जिस मार्ग पर आपको चलना है, वह अत्यन्त दुर्गम है। प्रद्युम्नकुमार अनिरुद्ध इस समय जहाँ विद्यमान हैं, वह शोणितपुर यहाँ से ग्‍यारह हजार योजन की दूरी पर है। गोविन्द! महापराक्रमी और प्रतापी विनतानन्दन गरुड़ मन के समान वेगशाली हैं। आप उन्हीं का आवाहन कीजिये। वे ही आप को वहाँ पहुँचायेंगे। वे एक ही मुहूर्त में आपको बाणासुर के सामने उपस्थित कर देंगे।

वैशम्पायन जी कहते हैं- राजन! नारद जी का वह वचन सुनकर भगवान श्रीकृष्ण ने उस समय गरुड़ का स्मरण किया। स्मरण करते ही वे श्रीकृष्ण के पास आकर हाथ जोड़कर खड़े हो गये। महात्मा वासुदेव को प्रणाम करके महाबली गरुड़ उनसे स्नेहयुक्त मधुर वाणी में बोले।

गरुड़ ने कहा- पद्मनाभ! महाबाहो! आपने किसलिये मेरा स्मरण किया है। यहाँ आपको मुझ से जो काम है, उसे मैं ठीक-ठीक सुनना चाहता हूँ। प्रभो! आज्ञा दीजिये, मैं अपने पंखों के प्रहार से किसकी पुरी का नाश कर डालूँ?

गोविन्द! आपके प्रभाव से मेरे बल को कौन नहीं जानता है? वीर! महाबाहो! कौन मूढ़चित्त पुरुष आपकी गदा के वेग और सुदर्शन चक्र के तेज को नहीं जनता है? वह अपने घमंड के कारण नष्ट हो जायगा। प्रभो! वनमालाधारी बलराम जी सिंह के से मुख वाले अपने हल का प्रहार आज किस पर करने वाले हैं? किसी शरीर आज छिन्न-भिन्न होकर पृथ्वी पर गिरने वाला है? माधव! आप अपनी शंखध्वनि से किस के प्राणों को मोहित करने वाले हैं। यह कौन है, जो आज परिवार सहित यमलोक में जाना चाहता है। बुद्धिमान विनतानन्दन गरुड़ के ऐसा कहने पर वसुदेवनंदन भगवान श्रीकृष्‍ण बोले- 'वक्ताओं में श्रेष्ठ गरुड़! सुनो। बलि के पुत्र बाणासुर ने अपराजित वीर प्रद्युम्नकुमार अनिरुद्ध को उषा के साथ सम्बन्ध स्थापित करने के कारण शोणितपुर में बंदी बना लिया है। काम पीड़ित अनिरुद्ध उसने प्रचण्ड विष वाले सर्पों के द्वारा बाँध रखा है। पक्षिराज! उन्हीं अनिरुद्ध को बन्धन से छुड़ाने के लिये मैंने तुम्हारा आवाहन किया है। वेग में तुम्हारी समानता करने वाला दूसरा कोई नहीं है। तुम पक्षियों में सबसे श्रेष्ठ हो। कश्यपनन्दन! तुम्हारे सिवा दूसरे किसी के लिये उस मार्ग पर चलना असम्भव है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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