हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: सप्ताधिकशततम अध्याय: श्लोक 22-32 का हिन्दी अनुवादतत्पश्चात देवता, गन्धर्व, सिद्ध और महर्षि ‘साधु! साधु!’ कहकर केशवकुमार की प्रशंसा करने लगे। प्रद्युम्न के निकट जब वह मुद्गर कमलपुष्प बन गया, तब प्रद्युम्न ने नारद जी के दिये हुए वैष्णव नामक दिव्यास्त्र का संधान किया और अपन धनुष को झुकाकर इस प्रकार कहा- 'वैष्णवास्त्र! यदि मैं रुक्मिणी देवी और भगवान श्रीकृष्ण का पुत्र हूँ तो इस सत्य के प्रभाव से तुम अपने बाण द्वारा रणभूमि में शम्बरासुर को मार डालो।' ऐसा कहकर महामनस्वी प्रद्युम्न धनुष खींचकर उस पर बाण रखा और तीनों लोकों को जलाते हुए उसको शम्बरासुर के ऊपर छोड़ दिया। वृष्णिवंश के सिंह प्रद्युम्न के द्वारा चलाया गया वह बाण राक्षसों को मोह में डालने वाला था। वह शम्बरासुर के हृदय को विदीर्ण करके पृथ्वी पर आ गया, इससे उस दैत्य का न तो मांस, न स्नायुजाल, न हड्डी, न त्वचा और न रक्त ही शेष बचा। वैष्णवास्त्र के तेज से वह सब कुछ भस्म हो गया। उस महाकाय अधम दान शम्बर दैत्य के मारे जाने पर देवता और गन्धर्व हर्ष से खिल उठे तथा उर्वशी, मेनका, रंभा, विप्रचित्ति और तिलोत्तमा आदि अप्सराएं नृत्य करने लगीं। उपर्युक्त अप्सराएं जब प्रसन्नचित होकर नाचने लगीं, उस समय यह चराचर जगत भी हर्ष से झूम उठा। समस्त देवताओं सहित देवराज इन्द्र अत्यन्त प्रसन्न हो फूलों की वर्षा से प्रद्युम्न का सत्कार करके हर्ष विभोर हो गये। मधुसूदन श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न द्वारा समरभूमि में वैष्णवास्त्र से दैत्यराज शम्बर के मारे जाने पर समस्त देवताओं का शत्रु सम्बन्धी भय दूर हो गया और वे मकरध्वज प्रद्युम्न की स्तुति करते हुए अपने स्थान को चले गये। अपने शरीर द्वारा युद्धजनित थकावट का भार वहन करते हुए रुक्मिणीकुमार प्रद्युम्न ने नगर द्वार में प्रवेश किया। जैसे प्रेयसी से मिलकर प्रियतम को प्रसन्नता होती है, उसी प्रकार अत्यन्त हर्ष में भरे हुए प्रद्युम्न ने तुरंत ही अपनी पत्नी रति से साक्षात्कार किया। इस प्रकार श्री महाभारत के खिलभाग हरिवंश के अर्न्तगत विष्णु पर्व में शम्बरासुर का वध विषयक एक सौ सातवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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