हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 104 श्लोक 37-64

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: चतुरधिकशततम अध्याय: श्लोक 37-64 का हिन्दी अनुवाद

इसके यहाँ एक विचित्र ध्वज है, जो सिंह के चिह्न से युक्त पता का द्वार विभूषित है। वह ध्वज बाहरी फाटक पर लगा है और मेरुपर्वत के शिखर के समान ऊँचा जान पड़ता है। आज मैं अपने तीखे भल्ल से इसको काट गिराऊँगा। अपने ध्वज को खण्डित हुआ जानकर शम्बरासुर युद्ध के लिये निकलेगा। तब मैं युद्ध के द्वारा समरांगड़ में इसका वध करके द्वारकापुरी को जाऊँगा।' मन-ही-मन ऐसा कहकर प्रद्युम्न ने बलपूर्वक धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ायी और उस पर बाण का संधान किया। उस बाण के द्वारा महाबाहु प्रद्युम्‍न ने शम्बरासुर के ध्वज-रत्‍न को काट डाला। महात्मा प्रद्युम्‍न के द्वारा ध्वज के खण्डित होने का समाचार सुनकर कुपित हुए कालशम्बर ने अपने पुत्रों को आज्ञा दी, 'महावीरो! इस रुक्मिणीपुत्र को तुरंत मार डालने की चेष्टा करो। इसने मेरा अप्रिय किया है, अब मैं इस तरह इसे जीवित देखना चाहता।' शम्बर का यह आदेश सुनकर उसके पुत्र कवच आदि से सुसज्जित हो प्रद्युम्‍न के वध की इच्छा से हर्षपूर्वक निकले। चित्रसेन, अतिसेन, विष्वक्सेन, गद, श्रुतसेन, सुषेण, सोमसेन, मन, सेनानी, सैन्यहन्ता, सेनाहा, सैनिक, सेनस्कन्ध, अतिसेन, सेनक, जनक, सुत, सकाल, विकल, शान्त, शातान्तकर, अशुचि, कुम्भकेतु, सुदंष्ट्र और केशि आदि उनके नाम थे। वे सब-के-सब हर्ष और उत्साह से परिपूर्ण हो प्रद्युम्‍न के प्रति क्रोध से भर के चक्र, तोमर, शूल, पट्टिश तथा फरसे लिये निकले एवं अपने उस शत्रु को ललकारते हुए युद्ध के मुहाने पर खडे़ हो गये। उस समय महाबाहु प्रद्युम्‍न तुरंत ही रथ पर आरूढ़ हो धनुष लेकर युद्ध क्षेत्र की ओर चल दिये। तदनन्तर शम्बरासुर के पुत्रों का केशवकुमार के साथ भयंकर एवं रोमान्चकारी युद्ध आरम्भ हो गया। फिर तो सब देवता, गन्धर्व, बड़े-बड़े नाग और चारण देवराज इन्द्र को आगे करके विमानों के अग्र भागों में स्थित हुए। नारद, तुम्बुरु, हाहा और हूहू- ये गान करने वाले गन्धर्व अप्सराओं से घिरकर सभी उन विमानों में स्थित थे।

देवराज इन्द्र का प्रतीहार गन्धर्व वज्रधारी इन्द्र को प्रद्युम्‍न की विचित्र एवं अद्भुत चेष्टाएं सुनाने लगे- एक ओर तो शम्बरासुर के सौ पुत्र हैं और दूसरी ओर श्रीकृष्ण के एकमात्र पुत्र प्रद्युम्‍न हैं, बहुत-से योद्धाओं के सामने ये अकेले ही कैसे ही विजय पा सकते हैं। उसका वह कथन सुनकर बलसूदन इन्द्र जोर-जोर से हँस पड़े और बोले- 'प्रद्युम्‍न का जो पराक्रम है, उसका वर्णन सुनो। ये कामदेव हैं, जो पूर्व शरीर में रहते समय भगवान शंकर की क्रोधाग्‍नि से भस्म हो गये थे, फिर कामपत्नी रति ने महादेव जी को प्रसन्न किया। प्रसन्न हुए महादेव जी ने उसे वर दिया। भगवान विष्णु मानव-शरीर धारण करके जब द्वारका में निवास करेंगे, उस समय तुम्हारे स्वामी कामदेव उनके पुत्र होंगे, इसमें संशय नहीं हैं। इस समय ये महायशस्वी कामदेव तीनों लोगों में अनंग नाम से विख्यात होंगे और द्वारका में उत्पन्न होने पर महान तेज से सम्पन्न हो शम्बरासुर का वध करेंगे। उनके जन्‍म से केवल सात दिन का समय व्यतीत होने पर रुक्मिणी की गोद में स्थित हुए प्रद्युम्‍न को माया का आश्रय ले शम्बरासुर हर ले जायगा। अत: तू शम्बरासुर के घर जा और उसकी मायामयी भार्या बन जा। माया से अपने यथार्थ रूप को छिपाकर तू शम्बरासुर को मोह में डाले रहेगी। वहीं तुम्हें अपने प्रियतम कामदेव बालरूप में प्राप्त होंगे। धाय द्वारा उनका पालन-पोषण करके तुम उन्हें बड़ा बनाना। जब वे तरुण शरीर प्राप्त कर लेंगे, उस समय शम्बरासुर का वध करेंगे। तदनन्तर कामदेव तुम्हारे साथ द्वारका में जायेंगे और जैसे पार्वती के साथ मैं रहता हूँ, उसी प्रकार तुम्हारे साथ वे आनन्दपूर्वक रहेंगे। ऐसा आदेश देकर देवेश्वर पुरुषोत्तम शिव सिद्ध-चारण-सेवित कैलाश पर्वत को, जो मेरुगिरि के समान है, चले गये। इसके बाद कामपत्‍नी रति देवाधिदेव उमा-पति को प्रणाम करके काल के अन्त की प्रतीक्षा करती हुई शम्बरासुर के घर को चली गयी। इस प्रकार ये महाबाहु प्रद्युम्न पुत्रों सहित शम्बरासुर का संहार कर डालेंगे, क्योंकि वे ही इस दुरात्मा का अन्त करने वाले हैं।

इस प्रकार श्रीमहाभारत के खिलभाग हरिवंश के अन्‍तर्गत विष्‍णु पर्व में शम्‍बरासुर का वध विषयक एक सौ चारवां अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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