हरिवंश पुराण विष्णु पर्व अध्याय 101 श्लोक 40-59

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हरिवंश पुराण: विष्णु पर्व: एकाधिकशततम अध्याय: श्लोक 40-59 का हिन्दी अनुवाद

वह महाबली और विशालकाय दानव दुर्बुद्धि धेनुक भी गौओं की रक्षा के लिये ही वसुदेवनन्‍दन बलराम के हाथ से मारा गया। शत्रुओं का नाश करने वाले श्रीकृष्‍ण ने समस्‍त सेनाओं के साथ आये हुए सुनामा को, जो इन्‍हें कैद करने के लिये उपस्थित हुआ था, भेड़ियों द्वारा मारा भगाया। एक समय रोहिणीनन्‍दन बलराम जी के साथ मिलकर वन में विचरते हुए गोपवेशधारी श्रीकृष्‍ण ने पुन: एक महाबली दैत्‍य का वध करके कंस को भयभीत कर दिया। व्रज में रहते हुए वसुदेवनन्‍दन पुरुषोत्‍तम श्रीहरि ने भोजराज कंस के परिचारक अश्‍वधारी दैत्‍य को, जिसका युद्ध ही बल था, अपने सामने उपस्थित देख मार डाला। बुद्धिमान रोहिणीनन्‍दन बलराम ने कंस के मन्‍त्री महाकाय दानव प्रलम्‍ब को एक ही मुक्‍के से मार गिराया। व्रज में वसुदेव के ये दोनों महापराक्रमी पुत्र जो देवकुमारों के समान तेजस्‍वी थे, ब्रह्मगार्ग्‍य के द्वारा क्षत्रियोचित संस्‍कारों से सम्‍पन्‍न हो दिनों-दिन बढ़ते रहे। महर्षि गार्ग्‍य ने जन्‍म से ही लेकर इन दोनों के सभी संस्‍कार समय-समय पर स्‍वयं ही सूचित करके यथार्थ रूप से सम्‍पन्‍न किये हैं। जब ये नरश्रेष्‍ठ यौवन के सामने उपस्थित हुए, तब दो उद्गत सिंह शावकों तथा हिमालय के दो मतवाले हाथियों के समान सुशोभित होने लगे। फिर तो देवपुत्रों के समान कान्तिमान ये दोनों महाबली वीर गोपियों के चित्‍त चुराते हुए व्रज के प्रमुख व्‍यक्ति हो गये। विजय में, युद्ध में अथवा भाँति-भाँति की क्रीड़ाओं में व्रज के दूसरे-दूसरे ग्‍वाले नन्‍दगोप के इन दोनों पुत्रों की ओर आंखें उठाकर देख भी नहीं सकते थे (समता करना तो दूर की बात है)।

इनकी छाती चौड़ी है, भुजाएँ बड़ी-बड़ी हैं तथा ये साखू के तने की भाँति मोटे और ऊँचे कद के हैं, यह सुनकर कंस अपने मंत्रियों सहित व्‍यथित हो उठा था। जब बलराम और श्रीकृष्‍ण को कंस किसी तरह पकड़ न सका, तब क्रोध में आकर उसने उग्रसेन और बन्‍धु-बान्‍धवों सहित वसुदेव को कैद कर लिया और चोर की भाँति उन्‍हें सुदृढ़ बन्‍धन में डाल दिया। उन दिनों वसुदेव जी ने दीर्घकाल तक बड़े भारी कष्‍ट का सामना किया। पिता को कैद करके कंस जरासंध, आह्वृति और भीष्‍मक का सहारा ले शूरसेन देश का शासन करने लगा। किसी समय मथुरा में राजा कंस ने पिनाकधारी भगवान शंकर की प्रसन्‍नता के लिये एक बड़ा भारी उत्‍सव किया। प्रजानाथ उग्रसेन! उस उत्‍सव में अनेक देशों के मल्‍ल तथा नृत्‍य कर्म में कुशल बहुत-से नर्तक और गायक आये थे। उस समय महातेजस्‍वी कंस ने शिल्‍प कर्म में कुशल अच्‍छे-अच्‍छे शिल्पियों द्वारा एक रंगशाला बनवायी, जिसमें बहुत धन खर्च किया गया था। वहाँ हजारों मंच रखे गये थे, जो नगर और जनपद के लोगों से भरे पूरे दिखायी देते थे। वे आकाश में फैले हुए नक्षत्रों के समान दृष्टिगोचर होते थे। तदनन्‍तर भोजराज कंस अनुपम शोभा से युक्‍त बहुमूल्‍य रंगमंच पर आरूढ़ हुआ, मानो कोई पुण्‍यात्‍मा पुरुष विमान पर चढ़ा हो। पराक्रमी कंस ने रंगशाला के द्वार पर शूरवीर महावतों से युक्‍त एक मतवाले हाथी को खड़ा करा रखा था, जो बहुसंख्‍यक अस्‍त्र-शस्‍त्रों से सुसज्जित था।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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