द्वितीय (2) अध्याय: स्त्री पर्व (जलप्रदानिक पर्व)
महाभारत: स्त्री पर्व: द्वितीय अध्याय: श्लोक 31-37 का हिन्दी अनुवाद
मनुष्य चाहिये कि वह मानसिक दु:ख को बुद्धि एवं विचार द्वारा और शारीरिक कष्ट को औषधियों द्वारा दूर करे, यही विज्ञान की शक्ति है। उसे बालकों के समान अविवेक पूर्ण बर्ताव नहीं करना चाहिये। मनुष्य का पूर्वकृत कर्म उसके सोने पर साथ ही सोता है, उठने पर साथ ही उठता है और दौड़ने पर भी साथ-ही-साथ दौड़ता है। मनुष्य जिस-जिस अवस्था में जो-जो शुभ या अशुभ कर्म करता है, उसी-उसी अवस्था में उसका फल भी पा लेता है। जो जिस-जिस शरीर से जो-जो कर्म करता है, दूसरे जन्म में वह उसी-उसी शरीर से उसका फल भोगता है। मनुष्य आप ही अपना बन्धु है, आप ही अपना शत्रु है और आप ही अपने शुभ या अशुभ कर्म का साक्षी है। शुभ कर्म से सुख मिलता है और पाप कर्म से दु:ख, सर्वत्र किये हुए कर्म का ही फल प्राप्त होता है, कहीं भी बिना किये का नहीं। आप जैसे बुद्धिमान पुरुष अनेक विनाशकारी दोषों से युक्त तथा मूलभूत शरीर का भी नाश करने वाले बुद्धि विरुद्ध कर्मों में नहीं आसक्त होते हैं। इस प्रकार श्रीमहाभारत स्त्रीपर्व के अन्तर्गत जल प्रदानिकपर्व में धृतराष्ट्र के शोक का निवारण विषयक दूसरा अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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