महाभारत सभा पर्व अध्याय 68 श्लोक 84-90

अष्टषष्टितम (68) अध्‍याय: सभा पर्व (द्यूत पर्व)

Prev.png

महाभारत: सभा पर्व: अष्टषष्टितम अध्याय: श्लोक 84-90 का हिन्दी अनुवाद


झूठ बोलने वाला मनुष्‍य उन सभी दु:खों का भागी होता है। समक्ष दर्शन, श्रवण और धारण से साक्षी संज्ञा होती है, अत: सत्‍य बोलने वाला साक्षी कभी धर्म और अर्थ से वंचित नहीं होता। कश्यप जी की यह बात सुनकर प्रह्लाद ने अपने पुत्र से कहा- 'विरोचन! सुधन्वा तुमसे श्रेष्‍ठ है, उसके पिता अंगिरा मुझसे श्रेष्‍ठ है और सुधन्वा की माता तुम्‍हारी माता से श्रेष्‍ठ है। अब यह सुधन्वा ही तुम्‍हारे प्राणों का स्‍वामी है’।

सुधन्वा ने कहा- दैत्‍यराज! तुम पुत्र स्नेह की परवा न करके जो धर्म पर डटे रहे गये, इससे प्रसन्‍न होकर मैं तुम्‍हारे पुत्र को यह आज्ञा देता हूँ कि यह सौ वर्षों तक जीवित रहे।

विदुर जी कहते हैं- सभासदो! इस प्रकार इस उत्तम धर्ममय प्रश्‍न को सुनकर आप सब लोग द्रौपदी के प्रश्‍न के अनुसार यह बतावें कि उसके सम्‍बन्‍ध में आपकी क्‍या मान्‍यता है?

वैशम्‍पायन जी कहते हैं- जनमेजय! विदुर की यह बात सुनकर भी सब राजा लोग कुछ न बोले। उस समय कर्ण ने दु:शासन से कहा- ‘इस दासी द्रौपदी को अपने घर ले जाओ’। द्रौपदी लज्‍जा में डूबी हुई थरथर काँप‍ती और पाण्‍डवों को पुकारती थी। उस दशा में दु:शासन ने उस भरी सभा के बीच उस बेचारी दुखिया तपस्विनी को घसीटना आरम्‍भ किया


इस प्रकार श्रीमहाभारत सभापर्व के अन्तर्गत द्यूतपर्व में 'द्रौपदी को भरी सभा में खींचना' इस विषय से सम्बंध रखने वाला अड़सठवाँ अध्याय पूरा हुआ।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः