अष्टपंचाशत्तम (58) अध्याय: सभा पर्व (द्यूत पर्व)
महाभारत: सभा पर्व: अष्टपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 22-38 का हिन्दी अनुवाद
जनमेजय! उन पुरुषश्रेष्ठ प्रियदर्शन पाण्डवों को आये देख कौरवों को बड़ा हर्ष हुआ। तत्पश्चात् धृतराष्ट्र की आज्ञा ले पाण्डवों ने रत्नमय गृहों में प्रवेश किया। दु:शला आदि स्त्रियों ने वहाँ आये हुए उन सब को देखा। द्रुपदकुमारी की प्रज्वलित अग्नि के समान उत्तम समृद्धि देखकर धृतराष्ट्र की पुत्रवधुएँ अधिक प्रसन्न नहीं हुई। तदनन्तर वे नरश्रेष्ठ पाण्डव द्रौपदी आदि अपनी स्त्रियों से बातचीत करके पहले व्यायाम एवं केश-प्रसाधन आदि कार्य किया। तदनन्तर नित्यकर्म करके सब ने अपने को दिव्य चन्दन आदि से विभूषित किया। तत्पश्चात् मन में कल्याण की भावना रखने वाले पाण्डव ब्राह्मणों से स्वस्तिवाचन कराकर मनोनुकूल भोजन करने के पश्चात शयन गृह में गये। वहाँ स्त्रियों द्वारा अपने सुयश का गान सुनते हुए वे कुरुकुल के श्रेष्ठ पुरुष सो गये। उनकी यह पुण्यमयी रात्रि रति-बिलासपूर्वक समाप्त हुई। प्रात: काल बन्दीजनों के द्वारा स्तुति सुनते हुए पूर्ण विश्राम के पश्चात् उन्होंने निद्रा का त्याग किया। इस प्रकार सुखपूर्वक रात बिताकर वे प्रात:काल उठे और संध्योपासनादि नित्यकर्म करने के अनन्तर उस रमणीय सभा में गये। जुआरियों ने उनका अभिनन्दन किया।
इस प्रकार श्रीमहाभारत सभापर्व के अन्तर्गत द्यूतपर्व में युधिष्ठिरसभागमन-विषयक अट्ठावनवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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