अष्टात्रिंश (38) अध्याय: सभा पर्व (अर्घाभिहरण पर्व)
महाभारत: सभा पर्व: अष्टात्रिंश अध्याय: भाग 11 का हिन्दी अनुवाद
जिस समय वे वसुधा को अपने पैरों से माप रहे थे, उस समय वे इतने बड़े कि चन्द्रमा और सूर्य उनकी छाती के सामने आ गये थे। जब वे आकाश को लाँघने लगे तब वे ही चन्द्रमा और सूर्य उनके नाभिदेश में आ गये। जब वे आकाश या स्वर्ग लोक से भी ऊपर को पैर बढ़ाने लगे, उस समय उनका रूप इतना विशाल हो गया कि सूर्य और चन्द्रमा उनके घुटनों में स्थित दिखायी देने लगे। इस प्रकार ब्राह्मण लोग अमितपराक्रमी भगवान विष्णु के उस विशाल रूप का वर्णन करते हैं। युधिष्ठिर! भगवान का पैर ब्रह्माण्डकपाल तक पहुँच गया और उसके आघात से कपाल में छिद्र हो गया, जिससे झर-झर करके एक नदी प्रकट हो गयी, जो शीघ्र ही नीचे उतरकर समुद्र में जा मिली। सागर में मिलने वाली वह पावन सरिता ही गंगा है। भगवान श्री हरि ने बड़े-बड़े दानवों को मारकर सारी पृथ्वी उनके अधिकार से छीन ली और तीनों लोकों के साथ सारी आसुरी सम्पदा का अपहरण करके उन असुरों को स्त्री पुत्रों सहित पाताल में भेज दिया। नमुचि, शम्बर और महामना प्रह्लाद भगवान के चरणों के स्पर्श से पवित्र हो गये। भगवान ने उनको भी पाताल में भेज दिया। राजन्! भूतात्मा भगवान श्रीहरि ने अपने श्रीअंगों में विशेष रूप से पंचमहाभूतों तथा भूत, भविष्य और वर्तमान सभी कालों का दर्शन कराया। उनके शरीर में सारा संसार इस प्रकार दिखायी देता था, मानो उसमें लाकर रख दिया गया है। संसार में कोई ऐसी वस्तु नहीं है, जो उन परमात्मा से व्याप्त न हो। परमेश्वर भगवान विष्णु के उस रूप को देखकर उनके तेज से तिरस्कृत हो देवता, दानव और मानव सभी मोहित हो गये। अभिमानी राजा बलि को भगवान ने यज्ञमण्डप में ही बाँध लिया और विरोचन के समस्त कुल को स्वर्ग से पाताल में भेज दिया। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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