महाभारत सभा पर्व अध्याय 38 भाग 11

अष्टात्रिंश (38) अध्‍याय: सभा पर्व (अर्घाभिहरण पर्व)

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महाभारत: सभा पर्व: अष्टात्रिंश अध्याय: भाग 11 का हिन्दी अनुवाद


बलि से वह भूमि पाकर भगवान विष्णु बड़े वेग से बढ़ने लगे। राजन्! वे पहले तो बालक जैसे लगते थे, किंतु उन्होंने बढ़कर तीन ही पगों में स्वर्ग, आकाश और पृथ्वी सबको माप लिया। इस प्रकार बलवान राजा बलि के यज्ञ में जब महाबली भगवान विष्णु ने केवल तीन पगों द्वारा त्रिलोकी को नाप लिया, तब किसी से भी क्षुब्ध न किया जा सकने वाले महान असुर क्षुब्ध हो उठे। राजन्! उनमें विप्रचित्त आदि दानव प्रधान थे। क्रोध में भरे हुए उन महाबली दैत्यों के समुदाय अनेक प्रकार के वेषधारण किये वहाँ उपस्थित थे। उनके मुख अनेक प्रकार के दिखायी देते थे। वे सब-के-सब विशालकाय थे। उनके हाथों में भाँति-भाँति के अस्त्र शस्त्र थे। उन्होंने विविध प्रकार की मालाएँ तथा चन्दन धारण कर रखे थे। वे देखने में बड़े भयंकर थे और तेज से मानो प्रज्वलित हो रहे थे। भरतनन्दन! जब भगवान विष्णु ने तीनों लोकों को मापना आरम्भ किया, उस समय सभी दैत्य अपने-अपने आयुध लेकर उन्हें चारों ओर से घेरकर खड़े हो गये। भगवान ने महाभयंकर रूप धारण करके उन सब दैत्यों को लातों-थप्पड़ों से मारकर भूमण्डल का सारा राज्य उनसे शीघ्र छीन लिया। उनका एक पैर आकाश में पहुँचकर आदित्य मण्डल में स्थित हो गया। भूतात्मा भगवान श्रीहरि उस समय अपने तेज से सूर्य की अपेक्षा बहुत बढ़ चढ़कर प्रकाशित हो रहे थे। महाबली महाबाहु भगवान विष्णु सम्पूर्ण दिशाओं विदिशाओं तथा समस्त लोकों को प्रकाशित करते हुए बड़ी शोभा पा रहे थे।

जिस समय वे वसुधा को अपने पैरों से माप रहे थे, उस समय वे इतने बड़े कि चन्द्रमा और सूर्य उनकी छाती के सामने आ गये थे। जब वे आकाश को लाँघने लगे तब वे ही चन्द्रमा और सूर्य उनके नाभिदेश में आ गये। जब वे आकाश या स्वर्ग लोक से भी ऊपर को पैर बढ़ाने लगे, उस समय उनका रूप इतना विशाल हो गया कि सूर्य और चन्द्रमा उनके घुटनों में स्थित दिखायी देने लगे। इस प्रकार ब्राह्मण लोग अमितपराक्रमी भगवान विष्णु के उस विशाल रूप का वर्णन करते हैं। युधिष्ठिर! भगवान का पैर ब्रह्माण्डकपाल तक पहुँच गया और उसके आघात से कपाल में छिद्र हो गया, जिससे झर-झर करके एक नदी प्रकट हो गयी, जो शीघ्र ही नीचे उतरकर समुद्र में जा मिली। सागर में मिलने वाली वह पावन सरिता ही गंगा है। भगवान श्री हरि ने बड़े-बड़े दानवों को मारकर सारी पृथ्वी उनके अधिकार से छीन ली और तीनों लोकों के साथ सारी आसुरी सम्पदा का अपहरण करके उन असुरों को स्त्री पुत्रों सहित पाताल में भेज दिया।

नमुचि, शम्बर और महामना प्रह्लाद भगवान के चरणों के स्पर्श से पवित्र हो गये। भगवान ने उनको भी पाताल में भेज दिया। राजन्! भूतात्मा भगवान श्रीहरि ने अपने श्रीअंगों में विशेष रूप से पंचमहाभूतों तथा भूत, भविष्य और वर्तमान सभी कालों का दर्शन कराया। उनके शरीर में सारा संसार इस प्रकार दिखायी देता था, मानो उसमें लाकर रख दिया गया है। संसार में कोई ऐसी वस्तु नहीं है, जो उन परमात्मा से व्याप्त न हो। परमेश्वर भगवान विष्णु के उस रूप को देखकर उनके तेज से तिरस्कृत हो देवता, दानव और मानव सभी मोहित हो गये। अभिमानी राजा बलि को भगवान ने यज्ञमण्डप में ही बाँध लिया और विरोचन के समस्त कुल को स्वर्ग से पाताल में भेज दिया।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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