महाभारत विराट पर्व अध्याय 47 श्लोक 12-24

सप्तचत्वारिंश (47) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: सप्तचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 12-24 का हिन्दी अनुवाद


‘वे त्रिगर्त सैनिक गौओं को यहाँ ले आयेंगे अथवा यदि परास्त हो गये, तो हम लोगों से मिलकर पुनः मत्स्यराज के साथ युद्ध करेंगे। ‘अथवा यदि मत्स्यराज त्रिगर्तों को भगाकर अपने देश के लोगों एवं अपनी सारीद भयंकर सेना के साथ इस रात में हम लोगों से युद्ध करने के लिये यहाँ आ रहे होंगे। ‘उन्हीं सैनिकों में से यह कोई महापराक्रमी योद्धा अगुआ बनकर हमें जीतने आया है। यह भी संभव है कि ये स्वयं मत्स्यराज ही हों। ‘यदि यह मत्स्यों का राजा विराट हो अथवा अर्जुन ही उसकी ओर से आया हो, तो भी हम सब लोगों को उससे युद्ध करना ही है; यह हमने प्रतिज्ञा कर ली है। ‘फिर ये हमारे श्रेष्ठ रथी महारथी भीष्म, द्रोण्ध, कृप, विकर्ध और अश्वत्थामा आदि इस समय भ्रान्तचित्त हो रथों में चुपचाप बैइे हैं ?

युद्ध के सिवा और किसी बात में कल्याण नहीं है। यह समझकर अपने आपको इस परिस्थिति के अनुकूल बनाना चाहिये। ‘यदि स्वयं वज्रधारी इन्द्र अथवा यमराज ही युद्ध में आकर हमसे गोधन छीन लें, तो भी ऐसा कौन होगा, जो उनका सामना करना छोड़कर हस्तिनापुर को लौट जायेगा ?। ‘यदि कोई गहन वन में भागकर प्राण बचाना चाहे, तो मेरे इन बाणों से वे छिन्न - भिन्न कर दिये जायँगे। इस तरह भागने वाले पैदल सैनिकों में से कौन जीवित रह सकता है ? घुड़सवारों के विषय में संदेह है ( वे भागने पर मारे भी जा सकते हैं और बच भी सकते हैं )’।

दुर्योधन की बात सुनकर राधा नन्दन कर्ण ने कहा - ‘राजन्! आप आचार्य द्रोण को पीछे रखकर ऐसी नीति बनाइये कि विजय प्रापत हो। ‘ये पाण्डवो का मत जरनते हैं, इसीलिये यहाँ हमें डरा रहे हैं। और अर्जुन के प्रति इनका प्रेम अधिक मैं देखता हूँ।। ‘तभी तो अर्जुन को आते देख ये उसकी प्रशंसा कर रहे हैं। ( इनकी बातों से हतोत्साह होकर ) सेना मे भगदड़ न मच जाय, इसका खयाल रचाते हुए तद्नुकूल नीति निर्धारित कीजिये। ‘( आगे रहने पर ) ये अर्जुन के घोड़ों की हिनहिनाहट सुनते ही घबरा उठेंगे। फिर तो सारी सेना ी विचलित हो जायगी। इस समय हम विदेश में हैं, बड़े भारी जंगल में पड़े हुए हैं, गर्मी की ऋतु हैं और हम शत्रु के वश में आ गये हैं; अतः ऐसी नीति से काम लें कि इनकी बातें सुनकर सैनिकों के मन में भ्रम न फैले। ‘आचार्य को सदा से ही पाण्डव अधिक प्रिय रहे हैं। उन स्वार्थियों ने अपना काम बनाने के लिये ही द्रोणाचार्य को आपके पास रख छोड़ा है। ये स्वयं भी ऐसी बातें कहते हैं, जिससे हमारे कथन की पुष्टि होती है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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