महाभारत विराट पर्व अध्याय 47 श्लोक 25-34

सप्तचत्वारिंश (47) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: सप्तचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 25-34 का हिन्दी अनुवाद


भला, घोड़ों की हिनहिनाहट सुनकर कौन किसी की प्रशंसा करने लग जाता है ? घोड़े अपने स्थान पर हों या यात्रा करते हों, वे सदा ही हींसते रहते हैं ( इससे किसी की वीरता का क्या संबंध है,)। ‘हवा सदा चला करती है। इन्द्र हमेशा वर्षा करते हैं। मेघों की गर्जना बहुत बार सुनने को मिलती है। ( इससे डरने या अपशकुन मानने की क्या बात है ?) इसमें अर्जुन का क्या काम है (कौन सा चमत्कार है ?) इस बात को लेकर क्यों उसकी प्रशंसा की जाती है ? इसका कारण इस बात के सिवा और क्या हो सकता है कि आचार्य के मन में अर्जुन का भला करने की इच्छा हो एवं हमारे प्रति इनके हृदय में केवल द्वेष तथा रोष का भाव ही संचित हो ?। ‘आचार्य लोग बड़े दयालु, बुद्धिमान् और पाप तथा हिंसा के विरुद्ध विचार रखने वाले होते हैं। जब कोई महान् भय का अवसर प्राप्त हो, उस समय इनसे कोई किसी प्रकार की सलाह नहीं पूछनी चाहिये। ‘पण्डित लोग सुन्दर महलों और मन्दिरों में, सभाओं में और बगीचों में बैइकर जब विचित्र कथा वार्ता सुना रहे हों, तब वहीं उनकी शोभा होती है।

जनसमुदाय में बहुत से आश्चर्यजनक विनोदपूर्ण कार्य करने तथा यज्ञ - सम्बन्धी आयुधों ( पात्रों ) को यथास्थान रखने एवं प्रोक्षण आदि करने में ही पण्डितों की शोभा है। ‘दूसरों के छिद्र को जानने या देचाने में, मनुष्यों की दिनचर्या बताने में, घोड़े तथा रथ यात्रा करने का मुहुर्त आदि से निकालने में, गदहों, ऊँटों, बकरों और भेड़ों की गुण दोष समीक्षा तथा घर के श्रेष्ठ दरवाजों पर किये जाने वाले मांगलिक कृत्य में, नवीन अन्न का इष्टि द्वारा संस्कार कराने तथा अन्न में केश कीट आदि गिर जाने से जो दोष आता है, उन पर विचार करने में भी पण्डितों की राय लेनी चाहिये। ऐसे ही कार्यों में उनकी शोभा है। ‘शत्रुओं के गुणों का बखान करने वाले पण्डितों को पीछे करके ऐसी नीति काम मे लें, जिससे शत्रु का वध हो सके।। ‘गौओं को बीच में खड़ी करके उनके चारों ओर सेना का व्यूह बना लिया जाय तथा सब ओर से रक्षा की ऐसी व्यवसािा कर ली जाय, जिससे हम शत्रुओं के साथ युद्ध कर सकें’।

इस प्रकार श्रीमहाभारत विराट पर्व के अन्तर्गत गौहरण पर्व में उत्तर गोग्रह में दुर्योधन वाक्य सम्बन्धी सैंतालीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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