महाभारत विराट पर्व अध्याय 3 श्लोक 14-23

तृतीय (3) अध्याय: विराट पर्व (पाण्डवप्रवेश पर्व)

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महाभारत: विराट पर्व: तृतीय अध्याय: श्लोक 14-23 का हिन्दी अनुवाद


युधिष्ठिर बोले- यह द्रुपदकुमारी कृष्णा हम लोगों की प्यारी भार्या है। इसका गौरव हमारे लिये प्राणों से भी बढ़कर है। यह माता (पृथ्वी) की भाँति पालन करने योग्य तथा बड़ी बहन (धेनु) के समान आदरणीय है। यह तो दूसरी स्त्रियों की भाँति कोई काम-काज भी नहीं जानती; फिर वहाँ किस कर्म का आश्रय लेकर निवास करेगी? इसका शरीर अत्यन्त सुकुमार है। इसकी अवस्था नयी है। यह यशस्विनी राजकुमारी परम सौभाग्यवती तथा पतिव्रता है। भला, यह विराट नगर में किस प्रकार रहेगी? इस भामिनी ने जब से जन्म लिया है, तब से अब तक माला, सुगनिधत पदार्थ, भाँति-भाँति के गहने तथा अनेक प्रकार के वस्त्रों को ही जाना है। इसने कभी कष्ट का अनुभव नहीं किया है।

द्रौपदी ने कहा- भारत! इस जगत् में बहुत-सी ऐसी स्त्रियाँ हैं? जिनका दूसरों के घरों में पालन होता है और जो शिल्पकर्मों द्वारा जीवन निर्वाह करती हैं। वे अपने सदाचार से स्वतः सुरक्षित होती हैं। ऐसी स्त्रियों को सैंरन्ध्री कहते हैं। लोगों को अच्छी तरह मालूम है कि सैरन्ध्री की भाँति दूसरी स्त्रियाँ बाहर की यात्रा नहीं करती, (अतः सैरन्ध्री के वेश में मुझे कोई पहचान नहीं सकेगा।) इसलिये में सैरन्ध्री कहकर अपना परिचय दूँगी। बालों को सँवारने और वेणी-रचना आदि के कार्य में मैं बहुत निपुण हूँ। यदि राजा मुझसे पूछेंगे, तो कह दूँगी कि 'मैं महाराज युधिष्ठिर के महल में महारानी द्रौपदी की परिचारिका बन कर रही हूँ’। मैं अपनी रक्षा स्वयं करूँगी। आप जो मुझसे पूछते हैं कि वहाँ क्या करोगी? कैसे रहोगी? उसके उत्तर में निवेदन है कि मैं यशस्विनी राजपत्नी सुदेष्णा के पास जाऊँगी। मुझे अपने पास आयी हुई जानकर वे रख लेंगी और सब प्रकार से मेरी रक्षा करेंगी। अतः आपके मन में इस बात का दुःख नहीं होना चाहिये कि द्रौपदी कैसे सुरक्षित रह सकेगी।

युधिष्ठिर बोले- कृष्णे! तुमने भली बात कही, इसमें कल्याण ही भरा है। क्यों न हो, तुम ऊँचे कुल में उत्पन्न जो हुई हो। भामिनी! तुम्हें पाप का रंचमात्र भी ज्ञान नहीं है। तुम साध्वी हो और उत्तम व्रत के पालन में तत्पर रहती हो। कल्याणि! वहाँ ऐसा बर्ताव करना, जिससे वे पापी शत्रु फिर सुखी होने का अवसर न पा सकें; वे तुम्हें किसी तरह पहचान न सकें।


इस प्रकार श्रीमहाभारत विराटपर्व के अन्तर्गत पाण्डवप्रवेशपर्व में युधिष्ठिर आदि की परस्पर मन्त्रणा विषयक तीसरा अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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