अष्टदश (18) अध्याय: विराट पर्व (कीचकवधपर्व)
महाभारत: विराट पर्व: अष्टदश अध्यायः श्लोक 26-33 का हिन्दी अनुवाद
पाण्डुनन्दन! देखो, राजसभा में ऋषियों के साथ अनेक राजा जिनकी उपासना करते थे, वे ही पाण्डुपुत्र युधिष्ठिर आज दूसरे की उपासना कर रहे हैं। एक सामान्य सदस्य की हैसियत से दूसरे की सेवा में बैठे हुए वे विराट के मन को प्रिय लगने वाली बातें करते हैं। महाराज युधिष्ठिर को इस दशा में देखकर निश्चय ही मेरा क्रोध बढ़ जाता है। जो धर्मात्मा और परम बुद्धिमान हैं, जिनका कभी इस दुरावस्था में पड़ना उचित नहीं है, वे ही जीविका के लिये आज दूसरे के घर में पड़े हैं। महाराज युधिष्ठिर को इस दशा में देखकर किसे दुःख नहीं होगा? वीर! पहले राजसभा में समस्त भूमण्डल के लोग जिनकी सब ओर से उपासना करते थे, भारत! अब उन्हीं भरतवंशशिरामणि को आज दूसरे राजा की सभा में बैठे देख लो। भीमसेन! इस प्रकार अनेक दुःखों से अनाथ की भाँति पीड़ित होती हुई मैं शोक के महासागर में डूब रही हूँ, क्या तुम मेरी यह दुर्दशा नहीं देखते?
इस प्रकार श्रीमहाभारत विराटपर्व के अन्तर्गत कीचकवधपर्व में द्रौपदी-भीम संवाद विषयक अठारहवाँ अध्याय पूरा हुआ।
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
|