चतुर्दशम (14) अध्याय: विराट पर्व (कीचकवधपर्व)
महाभारत: विराट पर्व चतुर्दशम अध्यायः श्लोक 16-32 का हिन्दी अनुवाद
तनुमध्यमे! तुम्हारी कमर इतनी पतली है कि हाथों के अग्रभाग से (अंगूठे से लेकर तर्जनी तक के बित्ते से) माप ली जा सकती है। वह त्रिवली की तीन रेखाओं से परम सुन्दर दीखती है। तुम्हारे स्तनों के भार ने उसे कुछ झुका दिया है। भामिनी! नदी के दो किनारों के समान तुम्हारे मनोहर जघन को देख लेने से ही कामरूपी असाध्य रोग मुझ जैसे वीर पर भी आक्रमण कर रहा है। निर्दयी कामदेव अग्निस्वरूप होकर दावानल की भाँति मेरे हृदयरूपी वन में जल उठा है। तुम्हारे समागम का संकल्प इसमें घी का काम करता है। इससे अत्यन्त प्रज्वलित होकर यह काम मुझे जला रहा है। वरारोहे! तुम अपने संगमरूपी मेघ से आत्मसमर्पणरूपी वर्षा द्वारा इस प्रज्वलित मदनाग्नि को बुझा दो। चन्द्रमुखी! मेरे मन को उन्मत्त बना देने वाले कामदेव के बाण-समूह तुम्हारे समागम आशारूपी शान पर चढ़कर अत्यन्त तीखे और तीव्र हो गये हैं। कजरारे नयन प्रान्तों वाली सुन्दरी! अत्यन्त क्रोधपूर्वक चलाये हुए काम के वे प्रचण्ड एवं भयंकर बाण दयाशून्य हो वेग से आकर मेरे इस हृदय को विदीर्ण करके भीतर घुस गये हैं और अतिशय उन्माद (सन्निपातजनित बेहोशी) पैदा कर रहे हैं। वे मेरे लिये प्रेमोन्मादजनक हो रहे हैं। अब तुम्हीं आत्मदानजनित सम्भोगरूप औषध के द्वारा यहाँ मेरा उद्धार कर सकती हो। विलासिते! विचित्र माला और सुन्दर वस्त्र धारण करके समस्त आभूषणों से विभूषित हो मेरे साथ अतिशय कामभोग का सेवन करो। यहाँ अनेक प्रकार के वस्त्र हैं। अतः तुम ऐसे स्थान में निवास करने योग्य नहीं हो। तुम सुख भोगने के योग्य हो, किंतु यहाँ सुख से वंचित हो। मस्ती भरी चाल से चलने वाली सैरन्ध्री! तुम मुझसे सर्वोत्तम सुखभोग प्राप्त करो। अमृत के समान स्वादिष्ट और मनोहर भाँति-भाँति के पेय रसों का पान करती हुई तुम्हें जैसे सुख मिले, उसी प्रकार रमण करो। महाभागे! नाना प्रकार की भोग-सामग्री तथा सर्वोत्तम सौभाग्य पाकर उत्तमोत्तम शुभ भोगों के साथ पीने योग्य रसों का आस्वादन करो। अनघे! तुम्हारा यह सर्वोत्कृष्ट रूप सौन्दर्य आज की परिस्थितियों में केवल व्यर्थ जा रहा है। भामिनी! जैसे उत्तम हार को यदि किसी ने गले में धारण नहीं किया, तो उसकी शोभा नहीं होती, उसी प्रकार सुन्दरी! तुम शुभस्वरूपा और शोभामयी होकर भी किसी के गले का हार न बन सकने के कारण सुशोभित नहीं होती हो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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