एकाशीतितम (81) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: एकाशीतितम अध्याय: श्लोक 23-46 का हिन्दी अनुवाद
महाधनुर्धर भगदत्त ने राक्षसप्रवर घटोत्कच पर बड़े वेग से आक्रमण किया, मानो एक मतवाला हाथी दूसरे मतवाले हाथी पर टूट पड़ा हो। राजन्! उस समय राक्षस अलम्बुष ने युद्ध में उन्मत्त होकर लड़ने वाले सेनासहित सात्यकि पर क्रोधपूर्वक धावा किया। भूरिश्रवा ने रणभूमि में प्रयत्नपूर्वक धृष्टकेतु के साथ युद्ध छेड़ दिया। धर्मपुत्र युधिष्ठिर ने राजा श्रुतायु पर धावा किया। चेकितान ने समर में कृपाचार्य के ही साथ युद्ध छेड़ दिया। शेष योद्धा प्रयत्नपूर्वक महारथी भीष्म का ही सामना करने लगे। तदनन्तर उन राजसमूहों ने कुन्तीपुत्र धनंजय को सब ओर से घेर लिया। उन सबके हाथों में शक्ति, तोमर, नाराच, गदा और परिघ आदि आयुध शोभा पा रहे थे। तत्पश्चात् अर्जुन ने अत्यन्त क्रुद्ध होकर भगवान श्रीकृष्ण से इस प्रकार कहा- ‘माधव! युद्धस्थल में दुर्योधन की इन सेनाओं को देखिये, व्यूह के विद्वान् महात्मा गंगानन्दन ने इनका व्यूह रचा है। माधव! युद्ध की इच्छा से कवच बाँधकर आये हुए इन शूरवीरों पर दृष्टिपात कीजिये। केशव! यह देखिये, यह भाइयों सहित त्रिगर्तराज खड़ा है। जनार्दन! यदुश्रेष्ठ! ये जो रणक्षेत्र में मुझसे युद्ध करना चाहते हैं, मैं इन सबको आज आपके देखते-देखते नष्ट कर दूँगा’। ऐसा कहकर कुन्तीनन्दन अर्जुन ने अपने धनुष की प्रत्यन्चा पर हाथ फेरा और विपक्षी नरेशों पर बाणों की वर्षा प्रारम्भ कर दी। जैसे बादल वर्षा ऋतु में जल की धाराओं से तालाब को भरते हैं, उसी प्रकार वे महाधनुर्धर नरेश भी बाणों की वृष्टि से अर्जुन को भरपूर करने लगे। प्रजानाथ! उस महायुद्ध में श्रीकृष्ण और अर्जुन को बाणों से आच्छादित देख आपकी सेना में बड़े जोर से कोलाहल होने लगा। श्रीकृष्ण और अर्जुन को उस अवस्था में देखकर देवताओं, देवर्षियों, गन्धर्वों और नागों को महान् आश्चर्य हुआ। राजन्! तब अर्जुन ने कुपित होकर इन्द्रास्त्र का प्रयोग किया। उस समय हम लोगों ने अर्जुन का अद्भुत पराक्रम देखा। उन्होंने अपने बाण समूह द्वारा शत्रुओं की की हुई बाण वर्षा को रोक दिया। संजय कहते हैं- महाराज! उस समय वहाँ कोई भी योद्धा ऐसा नहीं रह गया था, जो उनके बाणों से क्षत-विक्षत न हो गया हो। आर्य! कुन्तीकुमार अर्जुन ने उन सहस्रों राजाओं के घोड़ों तथा हाथियों में से किन्हीं को दो-दो और किन्हीं को तीन-तीन बाणों से घायल कर दिया। अर्जुन की मार खाकर वे सब के सब शान्तनुनन्दन भीष्म की शरण में गये। उस समय अगाध विपत्ति-समुद्र में डूबते हुए सैनिकों के लिये भीष्म जहाज बन गये। महाराज! पाण्डवों के आक्रमण करने पर आपकी सेना का व्यूह भंग हो गया। वह सेना प्रचण्ड वायु के वेग से समुद्र की भाँति विक्षुब्ध हो उठी।
इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्व के अन्तर्गत भीष्मवधपर्व में सातवें दिन का युद्ध विषयक इक्यासीवां अध्याय पूरा हुआ।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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