महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 59 श्लोक 74-87

एकोनषष्टितम (59) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

Prev.png

महाभारत: भीष्म पर्व: एकोनषष्टितम अध्याय: श्लोक 74-87 का हिन्दी अनुवाद


उन बाणों की अत्यधिकता के कारण उनसे सम्पूर्ण दिशाएं आच्छादित हो गयी। न आकाश दिखायी देता था, न दिशाएं; न तो भूमि दिखायी देती थी और न मरीचिमाली भगवान भास्कर का भी दर्शन होता था। उस समय धूमयुक्त भयंकर हवा चलने लगी। सम्पूर्ण दिशाएं क्षुब्ध हो उठी। तब द्रोण, विकर्ण, जयद्रथ, भूरिश्रवा, कृतवर्मा, कृपाचार्य, श्रुतायु, राजा अम्बष्ठपति, विन्द, अनुविन्द, सुदक्षिण, पुर्वीय नरेशगण, सौवीरदेशीय क्षत्रियगण, वसाति, क्षुद्रक और मालवगण- ये सभी शान्तनुनन्दन भीष्म की आज्ञा के अनुसार चलते हुए तुरन्त ही किरीटधारी अर्जुन का सामना करने के लिये निकट चले आये। सात्यकि ने दूर से देखा, किरीटधारी अर्जुन घोडे़, पैदल तथा रथियों सहित कई लाख सैनिकों से घिर गये हैं, गजराज यूथपतियों ने भी उन्‍हें सब ओर से घेर रखा है।

तत्‍पश्‍चात पैदल, हाथी, घोडे़ और रथों द्वारा चारों ओर से आक्रान्त हुए शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ श्रीकृष्ण और अर्जुन को देखकर शिनिवंश के प्रमुख वीर सात्यकि तुरंत वहाँ आ पहुँचे। महाधनुर्धर शिनिवीर सात्यकि ने सहसा उन सेनाओं के समीप पहुँचकर अर्जुन की उसी प्रकार सहायता की, जैसे भगवान विष्णु, वृत्रविनाशक इन्द्र की सहायता करते हैं। युधिष्ठिर की सेना के हाथी, घोड़े, रथ और ध्वजाओं के समूह तितर-बितर हो गये थे। भीष्म ने उनके सम्पूर्ण योद्धाओें को भयभीत कर दिया था।

इस प्रकार युधिष्ठिर के सैनिकों को भागते देख शिनिवंश के प्रमुख वीर सात्यकि ने उनसे कहा- ‘क्षत्रियों! कहाँ जा रहे हो? प्राचीन महापुरुषों द्वारा यह श्रेष्ठ क्षत्रियों का धर्म नहीं बताया गया है। वीरों! अपनी प्रतिज्ञा न छोड़ो, अपने वीर धर्म का पालन करो’। इन्द्र के छोटे भाई श्रीकृष्ण ने उन श्रेष्ठ राजाओं को सब और भागते देखा और इस बात पर भी लक्ष्य किया कि अर्जुन जो कोमलता के साथ युद्ध कर रहा है और भीष्म इस संग्राम में अधिकाधिक प्रचण्ड होते जा रहे हैं। यह सब देख कर सम्पूर्ण यदुकुल का भरण-पोषण करने वाले महात्मा भगवान श्रीकृष्ण सहन न कर सके। उन्‍होंने समस्त कौरवों को सब ओर से आक्रमण करते देख यशस्वी वीर सात्यकि की प्रशंसा करते हुए कहा-

‘शिनिवंश के प्रमुख वीर! सात्वतरत्न! जो भाग रहे हैं, वे भाग जायँ। जो खडे़ हैं, वे भी चले जायँ। मैं इन लोगों का भरोसा नहीं करता, तुम देखो में अभी संग्राम भूमि में सहायक गणों के साथ भीष्म और द्रोणाचार्य को रथ से मार गिराता हूँ। सात्वत वीर! आज कौरव सेना का कोई भी रथी क्रोध में भरे हुए मुझ कृष्ण के हाथ से जीवित नहीं छूट सकता। मै अपना भयंकर चक्र लेकर महान व्रतधारी भीष्म के प्राण हर लूंगा। सात्यके! सहायकगणों सहित भीष्म और द्रोण- इन दोनों वीर महारथियों को युद्ध में मारकर मैं अर्जुन, राजा युधिष्ठिर, भीमसेन तथा नकुल-सहदेव को प्रसन्न करुंगा। धृतराष्ट्र के सभी पुत्रों तथा उनके पक्ष में आये हुए सभी श्रेष्ठ नरेशों को मारकर मैं प्रसन्नतापूर्वक आज अजातशत्रु राजा युधिष्ठिर को राज्य से सम्पन्न कर दूंगा'।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः