महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 53 श्लोक 23-41

त्रिपंचाशत्तम (53) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

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महाभारत: भीष्म पर्व: त्रिपंचाशत्तम अध्याय: श्लोक 23-41 का हिन्दी अनुवाद


राजन्! उस समय वे दोनों नरश्रेष्ठ लहुलुहान होकर वसंत ऋतु में खिले हुए दो पलाश वृ़क्षों की भाँति अत्यन्त शोभा पाने लगे। राजन्! तब उस सेना के अग्रभाग में खड़े हो अमर्ष में भरे हुए द्रोणाचार्य ने पराक्रम प्रकट करते हुए पुनः धृष्टद्युम्न का धनुष काट दिया। तब अमेय आत्मबल से सम्पन्न द्रोणाचार्य ने जिसका धनुष कट गया था, उन धृष्टद्युम्न पर झुकी हुई गांठ वाले बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी, मानो मेघ किसी पर्वत पर जल की बूंदे बरसा रहा हो। साथ ही उन्होंने भल्ल मारकर धृष्टद्युम्न के सारथि को रथ की बैठक से नीचे गिरा दिया और चार तीखे बाणों से उन चारों घोड़ों को भी मार गिराया। फिर वे समरांगण में जोर-जोर से सिंहनाद करने लगे। इतना ही नहीं, उन्होंने दूसरा बाण मारकर उनके हाथ में स्थित दूसरे धनुष को भी काट डाला। इस प्रकार धनुष कट जाने और घोडे़ और सारथि के मारे जाने पर रथहीन हुए धृष्टद्युम्न हाथ में गदा लेकर उतरने लगे।

भारत! इतने ही में अपने महान पौरूष का परिचय देते हुए द्रोणाचार्य ने तुरन्त ही बाण मारकर रथ से उतरते-उतरते ही उनकी गदा को भी गिरा दिया। वह एक अद्भुत-सी घटना हुई। तब सुन्दर बांहों वाले बलवान वीर धृष्टद्युम्न ने चन्द्राकार सौ फुल्लियों से सुशोभित तेजस्वी और विस्मृत ढाल तथा दिव्य एवं विशाल खग हाथ में लेकर द्रोण का वध करने की इच्छा से उनके ऊपर वेगपूर्वक आक्रमण किया। ठीक उसी तरह, जैसे मांस चाहने वाला सिंह वन में किसी मतवाले हाथी पर धावा करता है। भारत! उस समय हमने वहाँ द्रोणाचार्य का अद्भुत हस्त-लाघव, अस्त्र-प्रयोग, बाहुबल तथा पुरुषार्थ देखा। उन्होंने अपने बाणों की वर्षा से द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न को सहसा आगे बढ़ने से रोक दिया। अतः वे बलवान होने पर भी युद्ध में द्रोणाचार्य के पास तक न पहुँच सके।

द्रोणाचार्य से रोके गये महारथी धृष्टद्युम्न सिद्ध हस्त वीर पुरुष की भाँति अपनी ढाल से ही उनके बाण-समूहों का निवारण करने लगे। तब बलवान् वीर महाबाहु भीम सहसा समर में महामना धृष्टद्युम्न की सहायता करने के लिये आ पहुँचे। राजन्! उन्होंने सात पैर बाणों द्वारा द्रोणाचार्य को घायल कर दिया और द्रुपदकुमार धृष्टद्युम्न को तुरन्त ही अपने रथ पर चढ़ा लिया। महाराज! तब दुर्योधन ने विशाल सेना से युक्त भानुमान को द्रोणाचार्य की रक्षा के कार्य में नियुक्त किया। जनेश्वर! उस समय आपके पुत्र की आज्ञा के कलिंगदेशीय वीरों की वह विशाल सेना तुरन्त ही भीमसेन के सम्मुख आ पहुँची। तब रथियों में श्रेष्ठ द्रोणाचार्य भी धृष्टद्युम्न को छोड़कर युद्ध स्थल में विराट और द्रुपद इन दोनों वृद्ध नरेशों को आगे बढ़ने से रोकने लगे। इधर धृष्टद्युम्न भी उस समरांगण में धर्मराज युधिष्ठिर के पास चले गये। तत्पश्चात् समरभूमि में कलिंगदेशीय योद्धाओं और महामनस्वी भीमसेन का अत्यन्त भयंकर तथा रोमांचकारी युद्ध होने लगा। जो सम्पूर्ण जगत् का विनाश करने वाला घोर स्वरूप एवं महान् भयदायक था।

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्म पर्व के अन्तर्गत भीष्मवध पर्व में धृष्टद्युम्न और द्रोण का युद्धविषयक तिरपनवां अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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