शततम (100) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
महाभारत: भीष्म पर्व: अष्टनवतितम अध्याय: श्लोक 21-40 का हिन्दी अनुवाद
संजय कहते हैं- राजन्! उसके महान् गर्जन से वायु से विक्षुब्ध हुए समुद्र के समान पाण्डवों की विशाल सेना में सब ओर हलचल मच गयी। महाराज! उसके सिंहनाद से भयभीत हो बहुत से सैनिक अपने प्यारे प्राणों को त्याग कर पृथ्वी पर गिर पड़े। अभिमन्यु भी हर्ष और उत्साह में भरकर हाथ में धनुष बाण लिये रथ की बैठक में नृत्य सा करता हुआ उस राक्षस की ओर दौड़ा। तत्पश्चात् क्रोध में भरा हुआ वह राक्षस युद्ध में अभिमन्यु के समीप पहुँचकर पास ही खड़ी हुई उसकी सेना को भगाने लगा। इस प्रकार पीड़ित हुई पाण्डवों की विशालवाहिनी पर उस राक्षस ने युद्ध में उसी प्रकार धावा किया, जैसे बल नामक दैत्य ने देव सेना पर आक्रमण किया था। आर्य! युद्धस्थल में भयंकर राक्षस के द्वारा मारी जाती हुई उस सेना का महान् संहार होने लगा। उस समय राक्षस ने अपना पराक्रम दिखाते हुए रणक्षेत्र में सहस्रों बाणों द्वारा पाण्डवों की उस विशाल सेना को खदेड़ना आरम्भ किया। उस घोर राक्षस के द्वारा उस प्रकार मारी जाती हुई वह पाण्डव सेना भय के मारे रणभूमि से भाग चली। जैसे हाथी कमलमण्डित सरोवर को मथ डालता है, उसी प्रकार रणभूमि में पाण्डव सेना को रौंदकर अलम्बुष ने महाबली द्रौपदी पुत्रों पर धावा किया। द्रौपदी के पाँचों पुत्र महान् धनुर्धर तथा प्रहार करने में कुशल थे। उन्होंने संग्राम भूमि में कुपित हो उस राक्षस पर उसी प्रकार धावा किया, मानो पाँच ग्रह सूर्यदेव पर आक्रमण कर रहे हो। उस समय उन पराक्रमी द्रौपदीपुत्रों द्वारा वह श्रेष्ठ राक्षस उसी प्रकार पीड़ित होने लगा, जैसे भयानक प्रलयकाल आने पर चन्द्रमा पाँच ग्रहों द्वारा पीड़ित होते हैं। तत्पश्चात् महाबली प्रतिविन्ध्य ने पूर्णतः लोहे के बने हुए अप्रतिहत धार वाले शीघ्रगामी तीखे बाणों द्वारा उस राक्षस को विदीर्ण कर डाला। वे बाण उसके कवच को छेदकर शरीर में धँस गये। उनके द्वारा राक्षसराज अलम्बुष की वैसी ही शोभा हुई, मानो महान मेघ सूर्य की किरणों से ओत प्रोत हो रहा हो। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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