महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 89 श्लोक 18-32

एकोननवतितम (89) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व:एकोननवतितम अध्याय: श्लोक 18-32 का हिन्दी अनुवाद
  • अर्जुन के श्रेष्‍ठ बाणों से कटी हुई वीरों की परिघ के समान मोटी और महान सर्प के समान दिखायी देने वाली भिन्दिपाल, प्रास, शक्ति, ऋष्टि,फरसे,निर्व्यूह, खड्ग, धनुष, तोमर, बाण, कवच, आभूषण, गदा और भुजवद आदि से युक्त भुजाएँ आवेश में भरकर अपना महान वेग प्रकट करती, ऊपर को उछलती, छटपटाती और सब प्रकार की चेष्‍टाएँ करती थीं। (17-19)
  • जो जो मनुष्‍य उस समरांगण में अर्जुन का सामना करने के लिये चलता था, उस-उस के शरीर पर प्राणान्तकारी बाण आ गिरता था। (20)
  • अर्जुन वहाँ इस प्रकार निरन्तर रथ के मार्गों पर विचरते और धनुष को खींच रहे थे कि उस समय कोई भी उन पर प्रहार करने का थोड़ा-सा भी अवसर नहीं देख पाता था। (21)
  • पाण्डुपुत्र अर्जुन पूर्ण सावधान हो विजय पाने की चेष्‍टा करते और शीघ्रतापूर्वक बाण चलाते थे। उस समय उनकी फुर्ती देखकर दूसरे लोगों को बडा़ आश्चर्य होता था। (22)
  • अर्जुन ने हाथी और महावत को, घोडे़ और घुड़सवार को तथा रथी और सारथि को भी अपने बाणों से विदीर्ण कर डाला। (23)
  • जो लौटकर आ रहे थे, जो आ चुके थे, जो युद्ध करते थे और जो सामने खडे़ थे- इनमें से किसी को भी पाण्डुकुमार अर्जुन मारे बिना नहीं छोड़ते थे। (24)
  • जैसे आकाश में उदित हुआ सूर्य महान अन्धकार को नष्ट कर देता है, उसी प्रकार अर्जुन ने कंक की पाख वाले बाणों द्वारा उस गजसेना का संहार कर डाला। (25)
  • राजन बाणों से छिन्न-भिन्न होकर धरती पर पड़े हुए हाथियों से आपकी सेना वैसी ही दिखायी देती थी, जैसे प्रलयकाल में यह पृथ्वी इधर-उधर बिखरे हुए पर्वतों से आच्छादित देखी जाती है। (26)
  • जैसे दोपहर के सूर्य की ओर देखना समस्त प्राणियों के लिये सदा ही कठिन होता है, उसी प्रकार उस युद्धस्थल में कुपित हुए अर्जुन की ओर शत्रुलोग बड़ी कठिनाई से देख पाते थे। (27)
  • शत्रुओं को संताप देने वाले नरेश! इस प्रकार उस युद्ध स्थल में अर्जुन के बाणों से पीड़ित हुई आपके पु़त्र की सेना के पाँव उखड़ गये और वह अत्यन्त उद्विग्न हो तुंरत ही वहाँ से भाग चली। (28)
  • जैसे बड़े वेग से उठी हुई वायु बादलों के समूह को छिन्न-भिन्न कर देती है, उसी प्रकार दुर्मर्षण की सेना का व्यूह टूट गया और वह अर्जुन के खदेड़ने पर इस प्रकार जोर-जोर से भागने लगी कि उसे पीछे फिरकर देखने का भी साहस न हुआ। (29)
  • अर्जुन के बाणों से पीड़ित हुए आपके पैदल, घुड़सवार और रथी सैनिक चाबुक, धनुष की कोटि , हुंकार, हाँकने की सुन्दर कला, कोड़ों के प्रहार, चरणों के आघात तथा भयंकर वाणी द्वारा अपने घोड़ों को बड़ी उतावली के साथ हाँकते हुए भाग रहे थे। (30-31)
  • दूसरे गजारोही सैनिक अपने पैरों के अँगूठों और अंकुशों द्वारा हाथियों को हाँकते हुए रणभूमि से पलायन कर रहे थे। कितने ही योद्धा अर्जुन के बाणों से मोहित होकर उन्हीं के सामने चले जाते थे। उस समय आपके सभी योद्धाओं का उत्साह नष्‍ट हो गया था और मन में बड़ी भारी घबराहट पैदा हो गयी थी। (32)

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अनुसार जयद्रथवधपर्व में अर्जुनयुद्धविषयक नवासीवाँ अध्याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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