महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 26 श्लोक 19-37

षड्-विंश (26) अध्याय: द्रोण पर्व (संशप्‍तकवध पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: षड्-विंश अध्याय: श्लोक 19-37 का हिन्दी अनुवाद
  • इस प्रकार उन सेनाओं के व्‍यूह भंग होने तथा चारों ओर भागने पर प्राग्ज्योतिषपुर के राजा भगदत्‍त ने अपने हाथी के द्वारा भीमसेन पर धावा किया। (19)
  • इन्‍द्र ने जिस ऐरावत हाथी के द्वारा दैत्‍यों और दानवों पर विजय पायी थी, उसी के वंश में उत्‍पन्‍न हुए गजराज पर आरूढ़ हो भगदत्‍त ने भीमसेन पर चढ़ाई की थी। (20)
  • वह गजराज अपने दो पैरों तथा सिकोड़ी हुई सूँड़ के द्वारा सहसा भीमसन पर टूट पड़ा। (21)
  • उसके नेत्र सब ओर घूम रहे थे। वह क्रोध में भरकर पाण्‍डुनन्‍दन भीमसेन को मानो मथ डालेगा, इस भाव से भीमसेन के रथ की ओर दौड़ा और उसे घोड़ों सहित सामान्‍यत: चूर्ण कर दिया। (22)
  • भीमसेन पैदल दौड़कर उस हाथी के शरीर में छिप गये। पाण्‍डुपुत्र भीम अंजलिकावेध[1] जानते थे। इसलिये वहाँ से भागे नहीं। (23)
  • वे उसके शरीर के नीचे होकर हाथ से बारंबार थपथपाते हुए वध की आकांक्षा रखने वाले उस अविनाशी गजराज को लाड़-प्‍यार करने लगे। (24)
  • उस समय वह हाथी तुरंत ही कुम्‍हार के चाक के समान सब और घूमने लगा। उसमें दस हजार हाथियों का बल था। वह शोभायमान गजराज भीमसेन को मार डालने का प्रयत्‍न कर रहा था। (25)
  • भीमसेन भी उसके शरीर के नीचे से निकलकर उस हाथी के सामने खड़े हो गये। उस समय हाथी ने अपनी सूँड से गिरा कर उन्‍हें दोनों घुटनों से कुचल डालने का प्रयत्‍न किया। (26)
  • इतना ही नहीं, उस हाथी ने उन्‍हें गले में लपेटकर मार डालने की चेष्ट की। तब भीमसेन ने उसे भ्रम में डालकर उसकी सूँड़ की लपेट से अपने आपको छुड़ा लिया। (27)
  • तदनंतर भीमसेन पुन: उस हाथी के शरीर में ही छिप गये और अपनी सेना की ओर से उस हाथी का सामना करने के लिये किसी दूसरे हाथी के आगमन की प्रतीक्षा करने लगे। (28)
  • थोडी देर बाद भीम हाथी के शरीर से निकलकर बड़े वेग से भाग गये। उस समय सारी सेना में बड़े जोर से कोलाहल होने लगा। (29)
  • आर्य! उस समय सबके मुँह से यही बात निकल रही थी 'अहो! इस हाथी ने भीमसेन को मार डाला, यह कितनी बुरी बात है।' राजन! उस हाथी से भयभीत हो पांडवों की सारी सेना सहसा वहीं भाग गयी, जहाँ भीमसेन खड़े थे। (30)
  • तब राजा युधिष्ठिर ने भीमसेन को मारा गया जानकर पांचालदेशीय सैनिकों के साथ ले भगदत्‍त को चारों ओर से घेर लिया। (31)
  • शत्रुओं को संताप देने वाले वे श्रेष्‍ठ रथी उन महारथी भगदत्‍त को सब ओर से घेरकर उनके ऊपर सैकड़ों और हजारों पैने बाणों की वर्षा करने लगे। (32)
  • पर्वतराज भगदत्‍त ने उन बाणों के प्रहार का अंकुश द्वारा निवारण किया और हाथी को आगे बढ़ाकर पांडव तथा पांचाल योद्धाओं को कुचल डाला। (33)
  • प्रजानाथ! उस युद्धस्‍थल में हाथी के द्वारा बूढ़े राजा भगदत्‍त का हम लोगों ने अद्भुत पराक्रम देखा। (34)
  • तत्‍पश्चात दशार्णराज ने मदस्रावी, शीघ्रगामी तथा तिरछी दिशा[2] की ओर से आक्रमण करने वाले गजराज के द्वारा भगदत्‍त पर धावा किया। (35)
  • वे दोनों हाथी बड़े भयंकर रूप वाले थे। उन दोनों का युद्ध वैसा ही प्रतीत हुआ, जैसा कि पूर्वकाल में पंखयुक्‍त एवं वृक्षावली से विभूषित दो पर्वतों में युद्ध हुआ करता था। (36)
  • प्राग्‍ज्‍योतिषनरेश के हाथी ने लौटकर और पीछे हटकर दशार्णराज के हाथी के पार्श्‍वभाग में गहरा आघात किया और उसे विदीर्ण करके मार गिराया। (37)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. हाथी के निचले भाग में कोई ऐसा स्थान होता है, जिसमें दोनों हाथों से थपथपाने पर हाथी को सुख मिलता है। इस अवस्था में वह महावत के मारने पर भी टस-से-मस नहीं होता। भीमसेन इस कला को जानते थे। इसी का नाम अंजलिकावेध है।
  2. पार्श्‍व भाग

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