महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 25 श्लोक 50-65

पंचविंश (25) अध्याय: द्रोण पर्व (संशप्‍तकवध पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: पंचविंश अध्याय: श्लोक 50-65 का हिन्दी अनुवाद
  • तब अम्‍बष्‍ठ ने हड्डियों को छेद देने वाली शलाका द्वारा चेदिराज को विदीर्ण कर दिया। वे बाण सहित धनुष को त्‍यागकर रथ से पृथ्वी पर गिर पड़े। (50)
  • शरद्वान के पुत्र श्रेष्‍ठ कृपाचार्य ने क्रोध में भरे हुए वृष्णिवंशी वार्धक्षेमि को अपने बाणों द्वारा द्रोणाचार्य के पास आने से रोका। (51)
  • कृपाचार्य और वृष्णिवंशी वीर वार्धक्षेमि विचित्र रीति से युद्ध करने वाले थे। जिन लोगों ने उन दोनों को युद्ध करते हुए देखा, उनका मन उसी में आसक्‍त हो गया। उन्‍हें दूसरी किसी क्रिया का भान नहीं रहा। (52)
  • सोमदत्तकुमार भूरिश्रवा ने द्रोणाचार्य का यश बढ़ाते हुए उन पर आक्रमण करने वाले आलस्‍य रहित राजा मणिमान को रोक दिया। (53)
  • तब उन्‍होंने तुरंत ही भूरिश्रवा के विचित्र धनुष, ध्‍वजा-पताका, सारथि और छत्र को रथ से काट गिराया। (54)
  • यह देख यूप के चिह्न से सुशोभित ध्‍वज वाले शत्रुसूदन भूरिश्रवा ने तुरंत ही रथ से कूदकर लंबी तलवार से घोड़े, सारथि, ध्‍वज एवं रथ सहित राजा मणिमान को काट डाला। (55)
  • राजन! तत्‍पश्चात भूरिश्रवा अपने रथ पर बैठकर स्‍वयं ही घोड़ों को काबू में रखता हुआ दूसरा धनुष हाथ में ले पांडव सेना का संहार करने लगा। (56)
  • जैसे इन्‍द्र असुरों पर आक्रमण करते हैं, उसी प्रकार द्रोणाचार्य पर धावा करने वाले दुर्जय वीर पाण्‍ड्य को शक्तिशाली वीर वृषसेन ने अपने सायक-समूह से रोक दिया। (57)
  • तत्‍पश्चात गदा, परिघ, खड्ग, पट्टिश, लोहे के घन, पत्‍थर, कडंगर, भुशुण्डि, प्रास, तोमर, सायक, मुसल, मुद्रर, चक्र, भिन्दिपाल, फरसा, धूल, हवा, अग्नि, जल, भस्‍म, मिट्टी के ढेले, तिनके तथा वृक्षों से कौरव सेना को पीड़ा देता, शत्रुओं को अंग-भंग करता, तोड़ता-फोड़ता, मारता-भगाता, फेंकता एवं सारी सेना को भयभीत करता हुआ घटोत्कच वहाँ द्रोणाचार्य को पकड़ने के लिये आया। (58-60)
  • उस समय उस राक्षस को क्रोध में भरे हुए अलम्बुष नामक राक्षस ने ही अनेकानेक युद्धों में उपयोगी नाना प्रकार के अस्त्र-शस्‍त्रों द्वारा गहरी चोट पहुँचायी। (61)
  • उन दोनों श्रेष्‍ठ राक्षस यूथपतियों में वैसा ही युद्ध हुआ, जैसा कि पूर्वकाल में शम्‍बरासुर तथा देवराज इन्‍द्र में हुआ था। (62)

(महाराज! भरद्वाजनन्‍दन द्रोणाचार्य ने देखा कि पांडव सेनापति महारथी धृष्टद्युम्न दूसरे शत्रुओं को लाँघकर अपने मंत्रियों तथा सेवकों सहित मेरी ही ओर आ रहा है और शत्रु सेना पर बाणों का भारी जाल-सा बिखेर रहा है, तब उन्‍होंने स्‍वयं आगे बढ़कर उसे रोका।
राजन! इसी प्रकार अन्‍य सब राजा भी अपने बल और साधनों के अनुसार शत्रुओं के साथ भिड़ गये। उनकी संख्‍या बहुत होने के कारण सबके नामों का उल्‍लेख नहीं किया गया है।
घोड़ों से घोड़े, हाथियों से हाथी, पैदलों से पैदल तथा बड़े-बड़े रथों से महान रथ जूझ रहे थे। उस युद्ध में पुरुष शिरोमणि वीर अपने कुल और पराक्रम के अनुरूप एक-दूसरे से भिड़कर आर्यजनोचित कर्म कर रहे थे।)

  • महाराज! आपका कल्‍याण हो। इस प्रकार आपके और पांडवों के उस भयंकर संग्राम में रथ, हाथी, घोड़ों और पैदल सैनिकों के सैकड़ों द्वन्द्व आपस में युद्ध कर रहे थे। (63)
  • द्रोणाचार्य के वध और संरक्षण में लगे हुए पांडव तथा कौरव सैनिकों में जैसा संग्राम हुआ था, ऐसा पहले कभी न तो देखा गया है और न ही सुना गया है। (64)
  • प्रभो! वहाँ भिन्‍न-भिन्‍न दलों में बहुत-से विस्‍तृत युद्ध दृष्टिगोचर हो रहे थे, जिन्‍हें देखकर दर्शक कहते थे 'यह घोर युद्ध हो रहा है' यह विचित्र संग्राम दिखायी देता है और यहाँ अत्‍यन्‍त भयंकर मार-काट हो रही है। (65)

 

इस प्रकार श्रीमहाभारत द्रोणपर्व के अन्‍तर्गत संशप्‍तकवधपर्व में द्वन्द्वयुद्ध विषयक पच्चीसवाँ अध्‍याय पूरा हुआ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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