महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 23 श्लोक 43-63

त्रयोविंश (23) अध्याय: द्रोण पर्व (संशप्‍तकवध पर्व)

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महाभारत: द्रोण पर्व: त्रयोविंश अध्याय: श्लोक 43-63 का हिन्दी अनुवाद
  • इनके सिवा छ: हजार काम्‍बोजदेशीय प्रभद्रक नाम वाले योद्धा हथियार उठाये, भाँति-भाँति के श्रेष्‍ठ घोड़ों से जुते हुए सुनहरे रंग के रथ और ध्वजा से सम्‍पन्‍न हो धनुष फैलाये अपने बाण-समूहों द्वारा शत्रुओं को भय से कम्पित करते हुए सब समान रूप से मृत्यु को स्‍वीकार करने के लिये उद्यत हो धृष्टद्युम्न के पीछे-पीछे जा रहे थे। (43-44)
  • नेवले तथा रेशम के समान रंग वाले[1] उत्तम अश्व, जो सुन्‍दर सुवर्ण की माला से विभूषित तथा प्रसन्न चित्त वाले थे, चेकितान को युद्धस्‍थल में ले गये। (45)
  • अर्जुन के मामा पुरूजित कुन्तिभोज इन्‍द्रधनुष के समान रंग वाले उत्तम श्रेणी के सुन्‍दर अश्वों द्वारा उस युद्धभूमि में आये। (46)
  • राजा रोचमान को ताराओं से चित्रित अन्‍तरिक्ष के समान चितकबरे घोड़ों ने युद्धभूमि में पहुँचाया। (47)
  • जरासंध के पुत्र सहदेव को काले पैरों वाले चितकबरे श्रेष्‍ठ घोड़े, जो सोने की जाली से विभूषित थे, रणभूमि में ले गये। (48)
  • कमल के नाल की भाँति श्वेतवर्ण वाले और श्येन पक्षी के समान वेगशाली उत्तम एवं विचित्र अश्व सुदामा को लेकर रणक्षेत्र में उपस्थित हुए। (49)
  • जिनके रंग खरगोश के समान और लोहित हैं तथा जिनके अंगों में श्‍वेतपीत रोमावलियाँ सुशोभित होती हैं, वे घोड़े उन गोपति पुत्र पांचालराजकुमार सिंहसेन[2]को युद्धस्‍थल में ले गये थे। (50)
  • पांचालों में विख्‍यात जो पुरुषसिंह जनमेजय हैं, उनके उत्तम घोड़े सरसों के फूलों के समान पीले रंग के थे। (51)
  • उड़द के समान रंग वाले, स्‍वर्णमाला विभूषित, दधि के समान श्‍वेत पृष्‍ठभाग से युक्‍त और चितकबरे मुख वाले वेगशाली विशाल अश्व पांचालराजकुमार को संग्रामभूमि में शीघ्रतापूर्वक ले गये। (52)
  • शूर, सुन्‍दर मस्‍तक वाले, सरकण्‍डे के पोरूओं के समान श्‍वेत-गौर तथा कमल के केसर की भाँति कान्तिमान घोड़े दण्डधार को रणभूमि में ले गये। (53)
  • गदहे के समान मलिन एवं अरुण वर्ण वाले, पृष्‍ठभाग में चूहें के समान श्‍याम-मलिन कान्ति धारण करने वाले तथा वि‍नीत घोड़े व्याघ्रदत्त को युद्ध में उछलते-कूदते हुए-से ले गये। (54)
  • काले मस्‍तक वाले, विचित्र वर्ण तथा विचित्र मालाओं से विभूषित घोड़े पांचालदेशीय पुरुषसिंह सुधन्वा को लेकर रणभूमि में उपस्थित हुए। (55)
  • इन्‍द्र के वज्र के समान जिनका स्‍पर्श अत्‍यन्‍त दु:सह है, जो वीरबहूटी के समान लाल रंग वाले हैं, जिनके शरीर में विचित्र चिह्न शोभा पाते हैं तथा जो देखने में भी अद्भुत हैं, वे घोड़े चित्रायुध को युद्धभूमि में ले गये। (56)
  • सुवर्ण की माला धारण किये चक्रवाक के उदर के समान कुछ-कुछ श्‍वेतवर्ण वाले घोड़े कोसलनरेश के पुत्र सुक्षत्र को युद्ध में ले गये। (57)
  • चितकबरे, विशालकाय, वश में किये हुए, सुवर्ण की माला से विभूषित तथा ऊँचे कद वाले सुन्‍दर अश्वों ने क्षेमकुमार सत्‍यधृति को युद्धभूमि में पहुँचाया। (58)
  • जिनके ध्वज , कवच और धनुष ये सब कुछ एक ही रंग के थे, वे राजा शुक्ल शुक्‍लवर्ण के अश्वों द्वारा युद्ध के मैदान में लौट आये। (59)
  • समुद्रसेन के पुत्र, भयानक तेज से युक्‍त चन्द्रसेन को चन्द्रमा के समान सफेद रंग वाले समुद्री घोड़ों ने युद्धभूमि में पहुँचाया। (60)
  • नीलकमल के समान रंग वाले, सुवर्णमय आभूषणों से विभूषित विचित्र मालाओं वाले अश्व विचित्र रथ से युक्‍त राजा शैब्‍य को युद्धस्‍थल में ले गये। (61)
  • जिनके रंग केराव के फूल के समान हैं, जिनकी रोमराजि श्‍वेतलोहित वर्ण की है, ऐसे श्रेष्‍ठ घोड़ों ने रणदुर्मद रथसेन को संग्रामभूमि में पहुँचाना। (62)
  • जिन्‍हें सब मनुष्‍यों से अधिक शूरवीर नरेश कहा जाता है, जो चोरों और लुटेरों का नाश करने वाले हैं, उन समुद्रप्रान्‍त के अधिपति को तोते के समान रंग वाले घोड़े रणभूमि में ले गये। (63)

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पिंगल-गौर वर्ण के
  2. यद्यपि सिंहसेन और व्याघ्रदत्त के मारे जाने का वर्णन (16।37) में आ चुका है। तथापि यहाँ घोड़ों के वर्णन के प्रसंग में संजय ने सामान्यत: सबके घोड़ों का उल्लेख कर दिया है। मृत्यु से पहले वे दोनों वैसे ही घोड़ों पर आरुढ़ हो रणभूमि में पधारे थे।

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