अष्टनवत्यधिकशततम (198) अध्याय: द्रोण पर्व (नारायणास्त्रमोक्ष पर्व)
महाभारत: द्रोणपर्व: अष्टनवत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 19-36 का हिन्दी अनुवाद
धृष्टद्युम्न ने कहा- माधव! मै तेरी यह बात सुनता हूं, सुनता हूँ और इसके लिये तुझे क्षमा भी करता हूँ। दुष्ट और अनार्य पुरुष सदा साधुजनों पर ऐसे ही आक्षेप करने की इच्छा रखते है। यद्यपि लोक में क्षमाभाव की प्रशंसा की जाती है, तथापि पापात्मा मनुष्य कभी क्षमा के योग्य नहीं है, क्योंकि क्षमा कर देने पर वह पापात्मा क्षमाशील पुरुष को ऐसा समझ लेता है कि यह मुझसे हार गया। तू स्वयं ही दुराचारी, नीच और पापपूर्ण विचार रखने वाला है, नख से शिखा तक तक पाप में डूबा होने के कारण निन्दा के योग्य, तथापि दूसरों की निन्दा करना चाहता। भूरिश्रवा की बांह काट डाली गयी थी। वे आमरण उपवास का नियम लेकर चुपचाप बैठे हुए थे। उस दशा में सबके मना करने पर भी जो तूने उनका वध किया, इससे बढ़कर महान पापकर्म और क्या हो सकता है? ओ क्रुर! मैने तो पहले ही युद्ध के मैदान दिव्यास्त्र द्वारा द्रोणाचार्य को मथ डाला था। फिर वे हथियार डालकर मारे गये, तो उसमें मैंने कौन-सा पाप कर डाला। सात्यके! जो युद्धस्थल में मुनिवृत का आश्रय ले आमरण उपवास का निश्चय लेकर बैठ गया हो, जो अपने साथ युद्ध न कर रहा हो तथा जिसकी बांह भी शत्रुओं द्वारा काट डाली गयी हो, ऐसे पुरुष को जो मार सकता है, वह दूसरे की निन्दा कैसे कर सकता है? जिस समय पराक्रमी भूरिश्रवा तुझे लात से मारकर धरती पर घसीट रहे थे, तू बड़ा श्रेष्ठ पुरुष था, तो उसी समय उन्हें क्यों नहीं मार डाला? जब अर्जुन ने पहले ही प्रतापी शूरवीर सोमदत्तकुमार भूरिश्रवा को परास्त कर दिया, उस समय तूने उनका वध किया। तू कितना नीच है? द्रोणाचार्य जहां-जहाँ पाण्डव सेना को खदेड़ते थे, वहीं-वहीं मैं जा पहुँचता और सहस्त्रों बाणों की वर्षा करके उनके छक्के छुड़ा देता था। जब तू स्वयं ही चाण्डाल के समान ऐसा पाप-कर्म करके निन्दा का पात्र बन गया है, तब दूसरे को कटु वचन सुनाने का कैसे अधिकारी हो सकता है? वृष्णिकुलकलंक! तू ही ऐसे-ऐसे पाप करने वाला और पाप कर्मों का भण्डार है, मैं नहीं। अत: फिर ऐसी बातें मुंह से न निकालना। चुपचाप बैठा रह, अब फिर ऐसी बातें तुझे नहीं कहनी चाहिए। तू मुझसे जो कुछ कहना चाहता है, वह तेरी बड़ी भारी नीचता है। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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