महाभारत द्रोणपर्व अध्याय 159 श्लोक 41-60

एकोनषष्टयधिकशततम (159) अध्याय: द्रोण पर्व (घटोत्कचवध पर्व)

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महाभारत: द्रोणपर्व: एकोनषष्टयधिकशततम अध्याय: श्लोक 41-60 का हिन्दी अनुवाद

उस समय राजा दुर्योधन ने कर्ण का पराक्रम देख अश्वत्थामा के पास पहुँचकर यह बात कही- 'रणभूमि में वह कवचधारी कर्ण समस्त राजाओं के साथ अकेला ही युद्ध कर रहा है। देखो, कर्ण के बाणों से पीड़ित हुई यह पाण्डव सेना कार्तिकेय के द्वारा नष्ट की हुई असुर वाहिनी के समान भागी जा रही है। ‘बुद्धिमान कर्ण के द्वारा रणभूमि में पराजित हुई इस सेना को देखकर सूतपुत्र का वध करने की इच्छा से ये अर्जुन आगे बढ़े जा रहे हैं। ‘अतः हम लोगों के देखते-देखते युद्ध में पाण्डु पुत्र अर्जुन जैसे भी महारथी सूतपुत्र को न मार सके, वैसी नीति से काम लो’। तब दैत्य सेना पर आक्रमण करने वाले इन्द्र के समान अर्जुन को कौरव सेना की ओर आते देख अश्वत्थामा, कृपाचार्य, शल्य और महारथी कृतवर्मा सूतपुत्र की रक्षा करने की इच्छा से अर्जुन का सामना करने के लिये आगे बढ़े। राजेन्द्र! उस समय वृत्रासुर पर चढ़ाई करने वाले इन्द्र के समान पांचालों से घिरे हुए अर्जुन ने भी कर्ण पर धावा किया।

धृतराष्ट्र ने पूछा- संजय! काल, अन्तक और यम के समान क्रोध में भरे हुए अर्जुन को देखकर वैकर्तन कर्ण ने उन्हें किस प्रकार उत्तर दिया। कैसे उनका सामना किया। महारथी कर्ण सदा ही अर्जुन के साथ स्पर्धा रखता था और युद्ध में अत्यन्त भयंकर अर्जुन को पराजित करने का विश्वास प्रकट करता था। संजय! उस समय अपने सदा के अत्यन्त वैरी अर्जुन को सहसा सामने पाकर सूर्य पुत्र कर्ण ने उन्हें किस प्रकार उत्तर देने का निश्चय किया। संजय ने कहा- राजन! जैसे एक हाथी को आते देख दूसरा हाथी उसका सामना करने के लिये आगे बढ़े, उसी प्रकार पाण्डु पुत्र धनंजय को आते देख कर्ण बिना किसी घबराहट के युद्ध में उनका सामना करने के लिये आगे बढ़ा।

वेग से आते हुए वैकर्तन कर्ण को अर्जुन ने अपने सीधे जाने वाले बाणों से आच्छादित कर दिया और कर्ण ने भी अर्जुन को अपने बाणों से ढक दिया। पाण्डु पुत्र अर्जुन ने पुनः अपने बाणों के जाल से कर्ण को आच्छादित कर दिया। तब क्रोध में भरे हुए कर्ण ने तीन बाणों से अर्जुन को बींध डाला। शत्रुओं को संताप देने वाले महाबली अर्जुन कर्ण की इस फुर्ती को न सह सके। उन्होंने सूतपुत्र कर्ण को शिला पर तेज किये हुए स्वच्छ अग्रभाग वाले तीन सौ बाण मारे। इसके सिवा कुपित हुए पराक्रमी एवं बलवान अर्जुन ने हँसते हुए से एक नाराच नामक बाण के द्वारा कर्ण की बायीं भुजा के अग्रभाग में चोट पहुँचायी। उस बाण से घायल हुए कर्ण के हाथ से धनुष छूटकर गिर पड़ा। फिर आधे निमेष में ही उस महाबली वीर ने पुनः वह धनुष लेकर सिद्वहस्त योद्धा की भाँति बाण-समूहों की वर्षा करके अर्जुन को ढक दिया। भारत! सूतपुत्र द्वारा की हुई उस बाण वर्षा को अर्जुन ने मुसकराते हुए से बाणों की वृष्टि करके नष्ट कर दिया। राजन! वे दोनों महाधनुर्धर वीर आघात का प्रतिघात करने की इच्छा से परस्पर बाणों की वर्षा करके एक-दूसरे को आच्छादित करने लगे। जैसे दो जंगली हाथी किसी हथिनी के लिये क्रोधपूर्वक लड़ रहे हों, उसी प्रकार उस युद्धस्थल में कर्ण और अर्जुन का वह संग्राम महान एवं अद्भुत था।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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