नवतितम (90) अध्याय: कर्ण पर्व
महाभारत: कर्ण पर्व: नवतितम अध्याय: श्लोक 50-63 का हिन्दी अनुवाद
तब भगवान श्रीकृष्ण ने युद्धस्थल में अर्जुन से कहा- यह विशाल नाग तुम्हारा वैरी है। तुम इसे मार डालो। भगवान मधुसूदन के ऐसा कहने पर शत्रुओं के बल का सामना करने वाले गाण्डीवधारी अर्जुन ने पूछा- प्रभो! आज मेरे पास आने वाला यह नाग कौन है? जो स्वयं ही गरुड़ के मुख में चला आया है। श्रीकृष्ण ने कहा- अर्जुन! खाण्डव वन में जब तुम हाथ में धनुष लेकर अग्निदेव को तृप्त कर रहे थे, उस समय यही सर्प अपनी माता के मूँह में घुसकर अपने शरीर को सुरक्षित करके आकाश में उड़ता जा रहा था। तुमने उसे एक ही सर्प समझकर केवल इसकी माता का वध कर दिया। उसी वैर को याद करके वह अवश्य अपने वध के लिये ही तुमसे भिड़ना चाहता है। शत्रुसूदन! आकाश से गिरती हुई प्रज्वलित उल्का के समान आते हुए इस सर्प को देखो। संजय कहते हैं- राजन! तब अर्जुन ने रोषपूर्वक घूमकर उत्तम धार वाले छः तीखे बाणों द्वारा आकाश में तिरछी गति से उड़ते हुए उस नाग के टुकडे़-टुकडे़ का डाले। शरीर टूक-टूक हो जाने के कारण वह पृथ्वी पर गिर पड़ा। राजन! किरीटधारी अर्जुन के द्वारा अश्वसेन सर्प के मारे जाने पर स्वयं भगवान पुरुषोत्तम श्रीकृष्ण ने उस नीचे धंसते हुए रथ को पुनः अपनी दोनों भुजाओं से शीघ्र ही ऊपर उठा दिया। उस मुहुर्त में नरवीर कर्ण ने धनंजय की ओर तिरछी दृष्टि से देखते हुए मयूरपंख से युक्त, शिला पर तेज किये हुए, दस बाणों से उन्हें घायल कर दिया। तब अर्जुन ने अच्छी तरह छोड़े हुए बारह बराहकर्ण नामक पैने बाणों द्वारा कर्ण को घायल करके पुनः विषधर सर्प के तुल्य एक वेगशाली नाराच को कान तक खींचकर उसकी ओर छोड़ दिया। भली-भाँति छूटे हुए उस उत्तम नाराच ने कर्ण के विचित्र कवच को चीर-फाड़कर उसके प्राण निकालते हुए से रक्तपान किया, फिर वह धरती में समा गया। उस समय उसके पंख खून से लथपथ हो रहे थे।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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