एकषष्टितम (61) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)
महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: एकषष्टितम अध्याय: श्लोक 18-36 का हिन्दी अनुवाद
दुर्धर्ष वीर पिताजी! इसलिये आप शोक त्याग दीजिये। शोक के वशीभूत न होइये। शत्रुओं के नगर पर विजय पाने वाला वीरवर अभिमन्यु शस्त्राघात से पवित्र हो उत्तम गति को प्राप्त हुआ है। उस वीर के मारे जाने पर मेरी यह बहन सुभद्रा दु:ख से आतुर हो पुत्र के पास जाकर कुररी की भाँति विलाप करने लगी और द्रौपदी के पास जाकर दु:खमग्न हो पूछने लगी- 'आर्ये! सब बच्चे कहाँ हैं? मैं उन सबको देखना चाहती हूँ'। इसकी बात सुनकर कुरुकुल की सारी स्त्रियाँ इसे दोनों हाथों से पकड़कर अत्यन्त आर्त-सी होकर करुणविलाप करने लगी। सुभद्रा ने उत्तरा से भी पूछा- "भद्रे! तुम्हारा पति वह अभिमन्यु कहाँ चला गया? तुम शीघ्र उसे मेरे आगमन की सूचना दो। विराटकुमारी! जो सदा मेरी आवाज सुनकर शीघ्र घर से निकल पड़ता था, वही तुम्हारा पति आज मेरे पास क्यों नहीं आता है? अभिमन्यो! तुम्हारे सभी महारथी मामा सकुशल हैं और युद्ध की इच्छा से यहाँ आये हुए तुमसे उन सबने तुम्हारा कुशल समाचार पूछा है। शत्रुदमन! पहले की भाँति आज भी तुम मुझे युद्ध की बात बताओ। मैं इस प्रकार विलाप करती हूँ तो भी आज यहाँ तुम मुझसे बात क्यों नहीं करते हो"? सुभद्रा का इस प्रकार विलाप सुनकर अत्यन्त दु:ख से आतुर हुई बुआ कुन्ती ने शनै:-शनै: उसे समझाते हुए कहा- "सुभद्रे! वासुदेव, सात्यकि और पिता अर्जुन- तीनों जिसका बहुत लाड़-प्यार करते थे, वह बालक अभिमन्यु कामधर्म से मारा गया है (उसकी आयु पूरी हो गयी, इसलिये मृत्यु के अधीन हुआ है)। यदुनन्दिनी! मृत्युलोक में जन्म लेने वाले मनुष्यों का धर्म ही ऐसा है- उन्हें एक-न-एक दिन मृत्यु के वश में होना ही पड़ता है, इसलिये शोक न करो। तुम्हारा दुर्जय पुत्र परम गति को प्राप्त हुआ है। बेटी! कमलदललोचने! तुम महात्मा क्षत्रियों के महान कुल में उत्पन्न हुई हो, अत: तुम अपने चंचल नेत्रों वाले पुत्र के लिये शोक न करो। शुभे! तुम्हारी बहु उत्तरा गर्भवती है, तुम उसी की ओर देखो, शोक न करो। वह भाविनी उत्तरा शीघ्र ही अभिमन्यु के पुत्र को जन्म देगी"। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज