त्रिषष्टितम (63) अध्याय: आदि पर्व (अंशावतरण पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: त्रिषष्टितम अध्याय: श्लोक 81-92 का हिन्दी अनुवाद
सत्यवती बोली- पिताजी! महर्षि शक्ति के पुत्र महाज्ञानी पराशर हैं, (वे यमुना जी के तट पर आये थे; उस समय) मैं नाव खे रही थी। उन्होंने मेरी दुर्गन्धता की ओर लक्ष्य करके मुझ पर कृपा की और मेरे शरीर से मछली की गन्ध दूर करके ऐसी सुगन्ध दे दी, जो एक योजन दूर तक अपना प्रभाव रखती है। महर्षि का यह कृपा प्रसाद देखकर सब लोक बड़े प्रसन्न हुए। विद्वान द्वैपायनजी ने देखा कि प्रत्येक युग में धर्म का एक-एक पाद लुप्त होता जा रहा हैं। मनुष्यों की आयु और शक्ति क्षीण हो चली है और युग की ऐसी दुरवस्था हो गयी है। यह सब सुनकर उन्होंने वेद और ब्राह्मणों पर अनुग्रह करने की इच्छा से वेदों का व्यास (विस्तार) किया। इसलिये वे व्यास नाम से विख्यात हुए। सर्वश्रेष्ठ वरदयाक भगवान व्यास ने चारों वेदों तथा पांचवें वेद महाभारत का अध्ययन सुमन्तु, जैमिनी, पैल, अपने पुत्र शुकदेव तथा मुझ वैशम्पायन को कराया। फिर उन सबने पृथक-पृथक महाभारत की संहिताऐं प्रकाशित की। अमिततेजस्वी शान्तनुनन्दन भीष्म आठवें वसु के अंश से गंगा जी के गर्भ से उत्पन्न हुए। वे महान पराक्रमी और यशस्वी थे। पूर्व काल की बात है वेदार्थों के ज्ञाता, महान यशस्वी, पुरातन मुनि, ब्रह्मर्षि भगवान अणीमाण्डव्य चोर न होते हुए भी चोर के संदेह से शूली पर चढ़ा दिये गये। परलोक में जाने पर उन महायशस्वी महर्षि ने पहले धर्म को बुलाकर इस प्रकार कहा। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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