त्रिषष्टितम (63) अध्याय: आदि पर्व (अंशावतरण पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: त्रिषष्टितम अध्याय: श्लोक 38-47 का हिन्दी अनुवाद
राजा का वह वन देवताओं के चैत्ररथ नामक वन के समान शोभा पा रहा था। वसन्त का समय था, अशोक ,चम्पा, आम, अतिमुक्तक (माधवीलता), पुन्नाग (नागकेसर), कनेर, मौलसिरी, दिव्यपाटल, पाटल, नारियल, चन्दन तथा अर्जुन– ये स्वादिष्ट फलों से युक्त, रमणीय तथा पवित्र महावृक्ष उस वन की शोभा बढ़ा रहे थे। कोकिलाओं के कल-कूजन से समस्त वन गूंज उठा था। चारों ओर मतवाले भौंरे कल-कल नाद कर रहे थे। यह उद्दीपन-सामग्री पाकर राजा का हृदय कामवेदना से पीड़ित हो उठा। उस समय उन्हें अपनी रानी गिरीका का दर्शन नहीं हुआ। उसे न देख कर कामाग्नि से संतप्त हो वे इच्छानुसार इधर-उधर घूमने लगे। घूमते-घूमते उन्होंने एक रमणीय अशोक का वृक्ष देखा, जो पल्लवों से सुशोभित और पुष्प के गुच्छों से आच्छादित था। उसकी शाखाओं के अग्रभाग फूलों से ढके हुए थे। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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