महाभारत आदि पर्व अध्याय 63 श्लोक 38-47

त्रिषष्टितम (63) अध्‍याय: आदि पर्व (अंशावतरण पर्व)

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महाभारत: आदि पर्व: त्रिषष्टितम अध्‍याय: श्लोक 38-47 का हिन्दी अनुवाद


उनमें जो पुरुष था, उसे शत्रुओं का दमन करने वाले धनदाता राजर्षिप्रवर वसु ने अपना सेनापति बना लिया और जो कन्‍या थी उसे राजा ने अपनी पत्नी बना लिया। उसका नाम था गिरिका। बुद्धिमानों में श्रेष्ठ जनमेजय! एक दिन ॠतुकाल को प्राप्‍त हो स्‍नान के पश्चात शुद्ध हुई वसुपत्नी गिरिका ने पुत्र उत्पन्न होने योग्‍य समय में राजा से समागम की इच्‍छा प्रकट की। उसी दिन पितरों ने राजाओं में श्रेष्ठ वसु पर प्रसन्न हो उन्‍हें आज्ञा दी ’तुम हिंसक पशुओं का वध करो।’ तब राजा पितरों की आज्ञा का उल्‍लघंन न करके कामनावश साक्षात् दूसरी लक्ष्‍मी के समान अत्‍यन्‍त रुप और सौन्‍दर्य के वैभव से सम्‍पन्न गिरिका का ही चिन्‍तन करते हुए हिंसक पशुओं को मारने के लिये वन में गये।

राजा का वह वन देवताओं के चैत्ररथ नामक वन के समान शोभा पा रहा था। वसन्‍त का समय था, अशोक ,चम्‍पा, आम, अतिमुक्तक (माधवीलता), पुन्नाग (नागकेसर), कनेर, मौलसिरी, दिव्‍यपाटल, पाटल, नारियल, चन्‍दन तथा अर्जुन– ये स्‍वादिष्ट फलों से युक्त, रमणीय तथा पवित्र महावृक्ष उस वन की शोभा बढ़ा रहे थे। कोकिलाओं के कल-कूजन से समस्‍त वन गूंज उठा था। चारों ओर मतवाले भौंरे कल-कल नाद कर रहे थे। यह उद्दीपन-सामग्री पाकर राजा का हृदय कामवेदना से पीड़ित हो उठा। उस समय उन्‍हें अपनी रानी गिरीका का दर्शन नहीं हुआ। उसे न देख कर कामाग्नि से संतप्त हो वे इच्‍छानुसार इधर-उधर घूमने लगे। घूमते-घूमते उन्‍होंने एक रमणीय अशोक का वृक्ष देखा, जो पल्‍लवों से सुशोभित और पुष्‍प के गुच्‍छों से आच्‍छादित था। उसकी शाखाओं के अग्रभाग फूलों से ढके हुए थे।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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